18 ग्रेनेडियर की अपनी टीम के साथ द्रास सेक्टर में दुश्मन की तीन चौकियों को तबाह किया। ( Destroyed Three Posts of Pakistan ) चौथी चौकी फतेह करने आगे बढ़ा ही था कि दुश्मन की मिसाइल का शिकार होकर शहीद हो गया। देश का यह बहादुर बेटा आज भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उसकी बहादुरी के किस्से आज भी हर किसी की जुबान पर है।
वे आज भी जिंदा हैं
करगिल का रण जीतने वाले शहीद के घर जब पत्रिका की टीम पहुंची तो वीरांगना सुनीता देवी की आंखों में शहीद पति की विरह के अश्क फूट पड़े। कांपते होठों से बार-बार यही कहतीं कि वो आज भी जिंदा है। वीरांगना अपना सुख-दुख शहीद की प्रतिमा से सांझा करती हैं। शहीद का सपना था कि उनकी दोनों बेटियां भी देश सेवा में नाम कमाए और वीरंगना भी उसी सपने को पूरा करने में जुटी हुई हैं। गांव में बना शहीद स्मारक सीताराम की याद को जिंदा रखे हुए है।
पिता की आंखें नम
पलसाना गांव के शहीद बेटे सीताराम कुमावत की बात करते ही पिता की आंखें नम हो जाती हैं। उन्हें याद आता है कि कैसे बीस साल पहले उनका लाडला तिरंगे में लिपटा घर लौटा था। वे बताते हैं कि बास्केटबाल का राष्ट्र स्तरीय खिलाड़ी बनने के बाद 27 अप्रेल 1993 को सेना में भर्ती हुआ तो आंखों में बरसों से पल रहा सपना पूरा हुआ। वे बताते हैं कि सीताराम शुरू से ही विरोधी टीम को हराने के लिए सारे पैंतरे बखूबी आजमाता और वैसा ही उसने करगिल युद्ध में किया।