scriptVIDEO : राजस्थान में शहीद लोकेन्द्र सिंह को अंतिम विदाई देने हाथों में तिरंगा लेकर पहुंचे लोग | Last Salute to BSF Jawan Lokendra Singh in Nangal Village of Sikar | Patrika News

VIDEO : राजस्थान में शहीद लोकेन्द्र सिंह को अंतिम विदाई देने हाथों में तिरंगा लेकर पहुंचे लोग

locationसीकरPublished: Jul 16, 2018 02:19:24 pm

Submitted by:

vishwanath saini

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BSF jawan Lokendra singh

Lokendra singh nangal nathusar sikar

सीकर.
छत्तीसगढ़ के मोहला के जंगल में रविवार तड़के नक्सलियों से हुई मुठभेड़ में राजस्थान का बहादुर बेटा लोकेन्द्र सिंह भी शहीद हो गया। लोकेन्द्र सिंह राजस्थान के सीकर जिले के गांव नांगल के रहने वाले थे। सोमवार सुबह शहीद लोकेंद्र सिंह की पार्थिव देह उनके गांव पहुंची।

बीएसएफ के जवान शहीद लोकेन्द्र सिंह को अंतिम विदाई देने पूरा शेखावाटी उमड़ा। खास बात यह है रही कि उनकी शवयात्रा में लोग हाथों में तिरंगा लेकर शामिल हुए। लोगों ने जब तक सूरज चांद रहेगा, लोकेन्द्र सिंह तेरा नाम रहेगा आदि देशभक्ति नारों से आसमां गूंजा दिया।

छह माह के बेटे ने दी मुखाग्रि
उनके छह माह के बेटे दक्षप्रतात सिंह ने चिता को मुखग्रि दी। गांव के मोक्षधाम में उनका दाह संस्कार किया गया। छह माह के बेटे दक्ष प्रताप सिंह ने पिता की चिता को मुखाग्रि दी तो कोई आंसू नहीं रोक पाया।
जानकारी के अनुसार सीकर के नाथूसर निवासी लोकेंद्र सिंह (26) और पंजाब के फिरोजपुर निवासी मुख्तियार सिंह (38) रविवार तड़के करीब 3 बजे 114वीं बटालियन के अन्य जवानों के साथ गश्त से लौट रहे थे।
इस दौरान नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दी। करीब आधा घंटे तक सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई। जवानों को भारी पड़ता देख नक्सली फरार हो गए।

वर्ष 2011 में हुए थे भर्ती
शहीद लोकेन्द्र सिंह की पार्थिव देह सोमवार सुबह साढ़े दस बजे गांव नाथूसर पहुंचीर। लोकेन्द्र सिंह मई 2011 में बीएसएफ में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुए थे। वर्तमान में वह छतीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र में बीएसएफ की 175 वीं बटालियन में तैनात थे। लोकेंद्र की तीन साल पहले ही शादी हुई थी।
BSF Jawan Lokendra : गांव का पहला शहीद
भारतीय सेना व अद्र्ध सैनिक बलों में गांव के सैकड़ों जवान विभिन्न पदों पर सेवाएं देकर सेवानिवृत हो चुके हैं वही सैकड़ों युवा सेवारत हैं। उनमे से बहुत से सैनिक भारत-चाइना, भारत पाक व कारगिल की लड़ाइयां लड़ चुके हैं, लेकिन कभी कोई शहीद नहीं हुआ। लोकेंद्र गांव का पहला शहीद बेटा है।

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