कैरी में ये विशेषता
लोहार्गल की कैरी (अमिया) का अचार भी अपने अनूठे स्वाद के लिए प्र्रख्यात है। शेखावाटी के साथ ही पूरे उत्तरी-पश्चिमी और पूर्वी राजस्थान में लोहार्गल की कैरी का अचार बड़े चाव से खाया जाता है। यूं तो पूरे भारत में उत्तरप्र्रदेश सहित काफी राज्योंं में कैरी की पैदावार होती है, लेकिन लोहार्गल की कैरी को इसके विशिष्ट स्वाद और खटाई के लिए जाना जाता है। लोहार्गल की तन में स्थित गुर्जरों की ढाणी व लोहरड़ा के अलावा चिराना और किरोड़ी की कैरी में यही विशेषता पाई जाती है। चिराना और किरोड़ी की कैरी का अचार भी लोहार्गल की कैरी के बराबर स्वादिष्ट माना जाता है।
लोगों का बन गया व्यवसाय
बाहर जहां भी इस क्षेत्र से जुड़े लोग लोग निवास कर रहेे हैं। वहां लोगों ने लोहार्गल एवं चिराना के अचार को अपना व्यवसाय भी बना लिाया। लोहार्गल सहित आसपास के क्षेत्र में आचार का उत्पादन अब लोगों के लिए एक लघु उद्योग के रूप मेें भी फायदेमंंद साबित हो रहा है।
भाव में तेजी
समय के साथ लोहार्गल में कैरी के उत्पादन में भी धीरे-धीरे आनुपातिक कमी आ रही है, इस वजह से लोहार्गल की देसी कैरी का भाव भी पहले से काफी बढ़ गया है। वहीं दुकानदार कई बार ग्राहकों को कम दाम के चक्कर में बाहरी कैरी भी बेच देते हैं। इसलिए स्वादिष्ट है अचार लोहार्गल एवं आसपास की कैरी का अचार अपने विशेष स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। यहां की कैैरी मेें विशेषता पाई जाती हैै कैरी की जाली और खटास लिए होती है। लोहार्गल की कैरी की जाली काफी रेशेदार होती है जिस वजह से अचार का मसाला अंदर तक रम जाता है। लोहार्गल क्षेत्र की कैरी का अचार 8 -10 महीने तक रखा रहने के बावजूद खराब नहीं होता है।
मिल रहा है रोजगार
लोहार्गल कैरी ने लघु उद्योग के रूप मेें भी लोगों को रोजगार मिल रहा है। आर्थिक मंदी से जूझ रहे लोगों को पर्याप्त आमदनी का एक जरिया मिल गया है। पेड़ से कैेरी तोडऩे से लेकर अचार बेचने तक करीब एक मण अचार से जुड़े 4-5 लोगों को रोजगार मिल जाता है।