इसलिए हुआ यज्ञ
आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रताडि़त यहां के किसान संगठित होना चाहते थे किंतु राजनीतिक और आर्थिक समस्या के समाधान के लिए सीकर ठिकाना उनको एकत्रित होने की अनुमति नहीं दे सकता था। इसलिए उन्होंने धर्म का सहारा लेकर जातिगत यज्ञ करने का निर्णय लिया। धार्मिक मामला होने के कारण सीकर ठिकाना किसानों को संगठित होने से रोक नहीं पाया। यज्ञ के दौरान लाखों लोगों के इक_ा होने से किसान स्वयं को संगठित करने का सपना साकार करने में सफल रहे।
निर्णायक रहा महायज्ञ
युवा इतिहासकार राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय लालासी के प्रधानाचार्य अरविंद भास्कर बताते हैं कि अब तक किसान अपने हितों के लिए संगठित नहीं हो पाए थे लेकिन इस महायज्ञ के माध्यम से वे एकजुट होने में सफल रहे। उनमें आत्मविश्वास और संघर्ष की भावना को बढ़ावा मिला। इसके परिणामस्वरूप अगले एक साल में उनकी तरफ से जबरदस्त संघर्ष हुआ और सीकर राज को उनकी अधिकांश मांगें स्वीकार करनी पड़ी। यह छपा है कक्षा 12 की इतिहास में”किसानों को धार्मिक आधार पर संगठित करने के लिए ठाकुर देशराज ने पलथाना में एक सभा कर जाट प्रजापति महायज्ञ करने का निश्चय किया। बसंत पंचमी 20 जनवरी 1934 को सीकर में यज्ञाचार्य पं. खेमराज शर्मा की देखरेख में यज्ञ आरंभ हुआ। यज्ञ की समाप्ति के बाद किसान यज्ञपति कुंवर हुकमसिंह को हाथी पर बैठाकर जुलूस निकालना चाहते थे किंतु रावराजा कल्याण सिंह और ठिकाने के जागीरदार इसके विरुद्ध थे। इससे लोगों में जागीरदारों के प्रति रोष उत्पन्न हुआ और माहौल तनावपूर्ण हो गया। प्रसिद्ध किसान नेता छोटूराम ने जयपुर महाराजा को तार से सूचित किया कि एक भी किसान को कुछ हो गया तो अन्य स्थानों पर भारी नुकसान होगा और जयपुर राज्य को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। अंतत: किसानों की जिद के आगे सीकर ठिकाने को झुकना पड़़ा और स्वयं ठिकाने ने जुलूस के लिए सजा सजाया हाथी प्रदान किया। सात दिन तक चले इस यज्ञ कार्यक्रम में स्थानीय लोगों सहित उत्तर प्रदेश, पंजाब, लोहारू, पटियाला और हिसार जैसे स्थानों से लगभग तीन लाख लोग शामिल हुए।अरविंद भास्कर ( कक्षा 12 इतिहास की पुस्तक के लेखक)प्रधानाचार्य, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय लालासी ,सीकर