सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष से ही वर्ष प्रारम्भ किया गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है कि मासानां मार्गशीर्षोऽयम् यानी सभी महीनों में मार्गशीर्ष महीना मेरा ही स्वरूप है। सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारम्भ किया था।
जानिए इस माह में किस तिथि पर कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं… मंगलवार, 19 नवंबर को कालभैरव अष्टमी है। इस भगवान कालभैरव के लिए विशेष पूजा-पाठ किए जाते हैं।
शुक्रवार, 22 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी है।
मंगलवार, 26 नवंबर को अगहन मास की अमावस्या तिथि है।
रविवार, 1 दिसंबर को श्रीराम और सीता का विवाह उत्सव है। इसे विवाह पंचमी भी कहते हैं। इस दिन श्रीराम और सीता की पूजा करनी चाहिए। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
बुधवार, 11 दिसंबर को अगहन मास की पूर्णिमा है, इसे दत्त पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की पूजा करनी चाहिए।
गुरुवार, 12 दिसंबर को स्नान दान की पूर्णिमा है और अगहन मास का अंतिम दिन है। इस तिथि पर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और दान करना चाहिए।
शुक्रवार, 22 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी है।
मंगलवार, 26 नवंबर को अगहन मास की अमावस्या तिथि है।
रविवार, 1 दिसंबर को श्रीराम और सीता का विवाह उत्सव है। इसे विवाह पंचमी भी कहते हैं। इस दिन श्रीराम और सीता की पूजा करनी चाहिए। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
बुधवार, 11 दिसंबर को अगहन मास की पूर्णिमा है, इसे दत्त पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की पूजा करनी चाहिए।
गुरुवार, 12 दिसंबर को स्नान दान की पूर्णिमा है और अगहन मास का अंतिम दिन है। इस तिथि पर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और दान करना चाहिए।