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कांगो में शहीद शिशुपाल का गांव गमगीन, नहीं जले चूल्हे

locationसीकरPublished: Jul 29, 2022 02:58:30 pm

Submitted by:

Sachin

कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में तैनात भारतीय जवान शिशुपाल सिंह बगड़िया के शहीद होने के बाद लक्ष्मणगढ़ उपखण्ड में स्थित उनके गांव बगड़ियों का बास में सन्नाटा पसरा हुआ है।

कांगो में शहीद शिशुपाल का गांव गमगीन, नहीं जले चूल्हे

कांगो में शहीद शिशुपाल का गांव गमगीन, नहीं जले चूल्हे

सीकर/लक्ष्मणगढ़. कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में तैनात भारतीय जवान शिशुपाल सिंह बगड़िया के शहीद होने के बाद लक्ष्मणगढ़ उपखण्ड में स्थित उनके गांव बगड़ियों का बास में सन्नाटा पसरा हुआ है। सीमा सुरक्षा बल में हैड कांस्टेबल शिशुपाल के शहीद होने की खबर मिलने के बाद से ही गांव में हर कोई गमजदा है। गांव की गलियां सूनी है। पत्रिका की टीम जब शहीद के घर पहुंची तो सेवानिवृत्त डिप्टी कमांडेंट शिवपाल सिंह, बीएसएफ में एएसआई रामनिवास बगड़िया, सेवानिवृत्त हैड कांस्टेबल महेन्द्र बगड़िया, सत्यपाल मील, सरपंच प्रतिनिधि महेश कुमार सहित कुछ ग्रामीण शहीद शिशुपाल के बड़े भाई मदन सिंह व मूलसिंह के पास बैठे उन्हें सांत्वना दे रहे थे। गांव में चौक पर हमेशा की तरह ग्रामीणों का हुजूम नहीं था, जो लोग बैठे थे उन्हें शहादत पर गर्व था। ग्रामीण वेदप्रकाश, झाबरसिंह, रिछपाल थालौड़, गोवर्द्धन, मूलचंद, गोपालराम मेघवाल, पूर्णमल बगड़िया आदि ने बताया कि शिशुपाल की शहादत पर पूरे गांव को गम के साथ-साथ गर्व भी है।

बेटे की शहादत से अंजान हैं माता-पिता

शिशुपाल सिंह की शहादत के बारे में उसके बुजुर्ग माता-पिता अभी तक अंजान है। गुरूवार को जब पत्रिका संवाददाता शिशुपाल सिंह के पैतृक गांव बगड़िया का बास पहुंचा तो उसके 85 वर्षीय पिता झाबरमल तथा माता पार्वती देवी अपने बेटे की शहादत से अंजान पालतू गायों को चारा खिलाने के साथ-साथ घास काटने के दैनिक क्रियाकलाप में व्यस्त नजर आए।

गांव के सबसे अच्छे धावक थे शिशुपाल

दस जून 1977 को जन्मे शिशुपाल की प्रारंभिक शिक्षा गांव की स्कूल में हुई। गांव में शिशुपाल के बचपन के मित्र ताराचंद व मनफूल ने बताया कि शिशुपाल बचपन से ही दौड़ में बड़े तेज थे तथा गांव के सबसे अच्छे धावकों में उनकी गिनती होती थी। माध्यमिक तक कर शिक्षा कोठ्यारी स्कूल नेछवा तथा उसके बाद की स्कूली पढ़ाई नई दिल्ली में करने के बाद अक्टूबर 1994 में शिशुपाल सीमा सुरक्षा बल में भर्ती हो गए। गत 4 मई 2022 को उनकी तैनाती संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत अफ्रीकन देश कांगो में की गई, जहां उनके बुटेम्बो स्थित कैंप पर हुए हिंसक हमले में 26 जुलाई को वे शहीद हो गए।

परिवार के एक दर्जन सदस्य देशसेवा में

शिशुपाल सिंह के परिवार के करीब एक दर्जन सदस्य देशसेवा में कार्यरत है। खुद शिशुपाल जहां सीमा सुरक्षा बल में हवलदार थे। वहीं उनके बड़े भाई मदनसिंह बगड़िया सीसुब की जैसलमेर स्थित 92 बटालियन में डिप्टी कमाण्डेंट है। दूसरे बड़े भाई मूलसिंह बगड़िया राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) कोलकाता में हवलदार पद पर कार्यरत है। इनके अलावा शिशुपाल का चचेरा भाई रामनिवास सीसुब में एएसआई, जबकि श्रीपाल सीआरपीएफ में कांस्टेबल है। शिशुपाल का भांजा श्रीराम गढ़वाल सिपाही के पद पर जम्मू में कार्यरत है।

पार्थिव देह जल्दीमंगवाने की गुहार

पत्रिका के माध्यम से शिशुपाल के भाई मदनसिंह ने भारत सरकार से गुहार लगाई है कि उनके बहादुर भाई शिशुपाल की पार्थिव देह को जल्दी से जल्दी भारत लाने की व्यवस्था की जाए।

गांव के युवाओं को देते थे प्रशिक्षण व मार्गदर्शन

गांव के युवा अध्यापक मनोज कुमार बगड़िया ने बताया कि शिशुपाल का युवाओं से गहरा लगाव था। शिशुपाल जब भी गांव आते थे तो युवाओं को कैरियर के बारे में मार्गदर्शन देते रहते थे। शिशुपाल के पैतृक घर के सामने स्थित खेल मैदान में खेलने वाले युवाओं को वे खेलों का प्रशिक्षण भी देते थे।

बेटी मेडिकल व बेटा कर रहा एमबीए

शहीद शिशुपाल की पत्नी व बच्चे जयपुर में रहते है। पत्नी कमला देवी सरकारी अध्यापक है। बेटी कविता एमबीबीएस में अध्ययनरत है जबकि बेटा प्रशांत एमबीए कर रहा है। शहादत से पूर्व 26 जुलाई को ही शिशुपाल ने पत्नी से फोन पर बात कर वहां की परिस्थितियों से अवगत करवाया था।

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