पिता की पेंशन से शुरु हुई मुहिम चंदे से बढ़ रही आगे
बेटियों की निशुल्क शिक्षा का मिशन मांगूराम जाखड़ ने नवंबर 2014 में शुरू किया। जो सेना में सुबेदार पद से सेवानिवृत होने के बाद एक निजी कॉलेज में गार्ड के पद पर नियुक्त हुए थे। यहांं खराब माली हालत की वजह से छात्राओं की पढ़ाई छूटते देख उनका दिल पसीज गया। इसके बाद उन्होंने अपनी पेंशन से जरुरतमंद छात्राओं को पढ़ाना शुरू किया। लोगों से मदद हासिल करने के लिए एक ट्रस्ट भी बनाया। 2017 में मांगूराम के निधन के बाद पेशे से किसान बेटे मोहनराम ने पूरी तरह से ये जिम्मेदारी संभाल ली। अपनी खेतीबाड़ी की आय के अलावा जन सहयोग से अब वे बेटियों का भविष्य संवार रहे हैं।
शिक्षा के साथ उठा रहे चिकित्सा का जिम्मा
मोहनराम जरुरतमंद बेटियों का चयन कर उनका सरकारी स्कूल में प्रवेश करवाते हैं। बीएड या अन्य कोर्स में निजी शिक्षण संस्थाओं में भी दाखिला दिलवातेे हैं। जहां उनका शिक्षण शुल्क, शिक्षण सामग्री, गणवेश व जरुरत पडऩे पर चिकित्सा खर्च वहन करते हैं। कोरोना काल में उन्होंने कम खर्च में शादी की मुहिम भी शुरु की। जिसके तहत कम खर्च में शादी के लिए 182 परिवारों को प्रेरित किया। ट्रस्ट से जुड़ी बेटियां भी कोरोना काल में साढ़े तीन लाख मास्क बांटकर सेवा की मिसाल कायम कर चुकी है।
सालाना 11 लाख का खर्च, 10 बेटियों को मिली सरकारी नौकरी
बकौल मोहनराम हर बेटी पर उनका ट्रस्ट औसतन तीन हजार रुपए सालाना खर्च करता है। ऐसे में हर साल करीब 11 लाख रुपए से ज्यादा राशि की आवश्यकता होती है। जो विभिन्न भामाशाहों व समाज सेवी संगठनों से जुटाई जाती है। निशुल्क शिक्षण मिलने पर गोद ली गई दस बेटियां दिल्ली पुलिस व एएनएम सहित विभिन्न पदों पर नौकरी हासिल कर चुकी है।