स्कूल नहीं गई, लेकिन बेटी को बनाया आईपीएस
जीवन में सफलता के लिए सपने देखना जरूरी है। सपने हमेशा बड़े देखो। पति रामचंद सुण्डा सेना के जरिए देश सेवा के मिशन मे जुटे थे। ऐसे में मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई। मैं कभी स्कूल नहीं गई। लेकिन सुना था मां ही बच्चों की पहली गुरु होती है। बच्चे जब स्कूल से पढ़कर आते थे रोजाना पूछती कि आज क्या पढ़ाई की। बच्चों ने मेरे संघर्ष और संस्कारों की राह पर चलते खुद सफलता की कहानी लिखी। यह कहना है कि कूदन गांव निवासी आईपीएस ऑफिसर प्रीति चन्द्रा की मां शाना का। जब पूरा राजस्थान मेरी बेटी प्रीति चन्द्रा को लेडी सिंघम के नाम से पुकारता है तो संघर्ष का दर्द पलभर में गायब हो जाता है। पत्रिका से खास बातचीत में शाना ने बताया कि बेटे कमलेश चन्द्रा की मेमोरी गुरु के नाम से देशभर में पहचान है। बेटी प्रीति चन्द्रा ने बिना किसी कोचिंग के सिविल सर्विस परीक्षा पहले ही प्रयास में पास की। इससे पहले वह स्कूल व्याख्याता भी रह चुकी है। प्रीति कॉलेज के दिनों में ही टीवी न्यूज रीडर का काम भी कर चुकी है। इसके अलावा छोटी बेटी कीर्ति चन्द्रा फैशन डिजाइनर है। प्रीति फिलहाल सीआईडी सीबी में डीआईजी के पद पर कार्यरत है। प्रीति की मां शाना ने बताया कि खुद से ज्यादा यकीन बच्चों पर था क्योंकि वह मेरे हर पल के संघर्ष के गवाह रहे है।
मां बेटे-बेटियों के लिए मजूदरी करती, एक बेटा बना आरएएस
यह एक ऐसे मां की कहानी है जिसने अपने पांच बच्चों को पढ़ाने के लिए अकाल राहत में काम करने से लेकर खेती का काम भी संभाला। मां बच्चों को एक ही बात बोलती कि पढ़-लिखकर काबिल बनोगे तो ही मुझे इस मजदूरी से राहत मिल सकती है। मां के इस दर्द को बच्चों ने समझा। यह संघर्षभरी कहानी है खंडेला इलाके के दुल्हेपुरा गांव निवासी शांति देवी के परिवार की। जब बच्चे अगली कक्षा में जाते तो फीस चुकाने के लिए पैसे नहीं होते थे। इस दौर में वह कभी एक पशु तो कभी पेड़ बेच देती थी। इस संघर्ष के बीच एक बेटा धर्मराज रूलानियां एसएमएस अस्पताल जयपुर में नर्सिँग ऑफिसर के पद पर पदस्थापित हो गया। इधर, छोटे बेटे हुक्मीचंद रूलानियां ने भी भाई और मां के सपनों को पूरा करने के जुनून से जुट गए। मेहनत की सीख के दम पर कक्षा आठवी, दसवीं व बारहवीं में टॉपर रहे। 12 वीं बोर्ड में पूरे प्रदेश में सीकर के नवजीवन साइंस स्कूल के जरिए 7 वीं रैेक हासिल की। इसके बाद बीटेक की पढ़ाई की। लेकिन सपना प्रशासनिक सेवा में जाने का था। इसके लिए वह जुटे रहे। वर्ष 2018 की राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा में प्रदेश में 18 वीं रैंक हासिल की। अब पूरा गांव इस मां को एसडीएम की मां के नाम से जानता है। मां-बेटे का कहना है कि इस संघर्ष में कॅरियर की राह दिखाने में धर्मराज के साथ शंकर बगडिय़ा का अहम रोल रहा।
Mother who never went to school, but made children IPS and RAS