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मदर्स डे: ममता के साये में ‘मा’नवता, बच्चों से दूर होकर मरीजों की सेवा कर रही मां

मां ममतामयी है तो मानवता की महामूर्ति भी है…। यह दो तस्वीरें इसकी बानगी है। पहली तस्वीर कोलिड़ा निवासी मीनाक्षी डमोलिया की है।

सीकरMay 09, 2021 / 12:58 pm

Sachin

मदर्स डे: ममता के साये में ‘मा’नवता, बच्चों से दूर होकर मरीजों की सेवा कर रही मां

सीकर/खंडेला. मां ममतामयी है तो मानवता की महामूर्ति भी है…। यह दो तस्वीरें इसकी बानगी है। पहली तस्वीर कोलिड़ा निवासी मीनाक्षी डमोलिया की है। जो बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज में नर्स पद पर नियुक्त है। मीनाक्षी के चार साल की दूधमुंही बेटी है, तो चार दिन पहले ही वह अपने बड़े भाई को कोरोना से खो भी चुकी है। लेकिन, इन विपरीत हालातों में भी वह ममता को मसोसकर अस्पताल में कोरोना से जूझती मानवता की सेवा में जुटी है। इसी तरह दूसरी तस्वीर खंडेला की जाजोद सीएचसी में नियुक्त नर्स सुमन की है। जो तीन साल के बेटे व दस साल की बेटी से तीन महीने से दूर रहकर कोरोना मरीजों को अपनी सेवाएं दे रही है। मानव धर्म को सर्वोपरि मानने वाली ये दोनों मां मानवता की सेवा के बाद शाम को मोबाइल से ही अपने बच्चों से बात करती है। इस मोबाइल मुलाकात में भी ममता से भरी इन मांओं के शब्द कम और आंसू ज्यादा निकलते हैं। भोले मन व मासूम लहजे से जब बच्चे उनसे घर आने की जिद करते हैं तो दिल को पहले से समझाए रखने पर भी आंखें छल छल आंसू बहाने लगती है। वह दुपट्टे से बार बार उन्हें पोंछती, पर वे बार बार उमड़ आते हैं। आंखें बंद कर वह आंसुओं को छलकने से रोकने की कोशिश भी करती है, लेकिन घनी बरसात के पानी की तरह मानो वह थमने का नाम ही नहीं लेते। मदर्स डे पर पत्रिका ऐसी सभी मांओं को सलाम करता है जो ममता के आंचल में मानवता को भी पाल रही है।


पति एंबुलेंस में देते हैं सेवा, ननिहाल रहते हैं बच्चे
चूरू निवासी सुमन के पति विनोद चौधरी भी बांसवाड़ा में 108 एंबुलेंस में सेवा दे रहे हैं। ऐसे में मां व पिता दोनों से दूर बच्चे झुंझुनू में अपने ननिहाल रह रहे हैं। सीएचसी में प्रसव से लेकर कोरोना मरीजों के सर्वे व उन्हें दवा पहुंचाने के कार्यों में जुटी सुमन का कहना है कि बेटी अंशु तो फिर भी समझाने पर समझ जाती है, लेकिन तीन साल का मासूम धु्रव उन्हें वीडियो कॉल में भी देखते ही रोने लगता है। ऐसे में वह भी अपने आंसू नहीं रोक पाती है। बेटे को रोते नहीं देख पाने की वजह से वह जानबूझकर रोज फोन भी नहीं करती हैं। बकौल सुमन बच्चों से दूर रहने का बहुत दुख है, लेकिन मानवता पर संकट की इस घड़ी में सेवा का सुकून भी उतना ही है।


बिलखती है बेटी, याद आता है भाई
मीनाक्षी डमोलिया चार दिन पहले ही अपने बड़े भाई को कोरोना की वजह से खो चुकी है। लेकिन, ओर किसी बहन के भाई को बचाने की जिद में वह लगातार कोरोना मरीजों की सेवा में जुटी है। दादा- दादी के पास रहने को मजबूर 4 साल की बेटी भी वीडियो कॉल करते समय बिलखकर मीनाक्षी की आंखों को तर कर देती है। मगर, भाई की याद व बेटी से मिलने की तड़प के बीच भी वह सेवा भाव को कम नहीं होने दे रही। मीनाक्षी के पति राकेश डमोलिया भी झुंझुनू के गुढ़ागौडज़ी कस्बे में कोविड मरीजो की तीमारदारी में जुटे हैं।

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