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राजस्थान के 27 स्कूलों को शहीद के नाम का इंतजार, सालों से लंबित चल रहे हैं प्रकरण

यहीं वजह है कि प्रदेश में 27 शहीद परिवार ऐसे हैं।

सीकरMar 09, 2018 / 01:57 pm

vishwanath saini

 

सीकर. वतन पर मर मिटने की प्रेरणा बच्चों तक पहुंचे सरकार संभवतया इसके पक्ष में नहीं है। यहीं वजह है कि प्रदेश में 27 शहीद परिवार ऐसे हैं। जिनके शहीदों के नाम पर स्कूलों का नामकरण सरकार अभी तक नहीं कर पाई है। जबकि आदेश पारित हुए वर्षों बीत चुके हैं। बानगी यह है कि नामकरण में शामिल शेखावाटी के चार प्रकरण लंबित चल रहे हैं। वहीं सबसे ज्यादा अलवर जिले में पांच स्कूल शहीदों के नाम को तरस रही हैं। जानकारी के अनुसार शहीद होने वाले वीर की याद स्कूली बच्चों के जहन में भी जिंदा रहे और वे इनसे प्रेरणा ले सकें। इसके लिए प्रदेश की स्कूलों का नामकरण शहीद के नाम पर किया जाना है। ताकि स्थानीय शहीद के बारे में कोई बच्चा अनभिज्ञ नहीं रहे।


लेकिन, स्थिति यह है कि प्रदेश की ऐसी 27 स्कूलें हैं। जिनको शहीद के नाम का इंतजार है। इनमें शेखावाटी जैसा सैनिक बाहुल्य क्षेत्र भी शामिल है। जहां के सबसे अधिक सैनिक वर्तमान में आर्मी में सेवाएं दे रहे हैं। हालांकि नामकरण के सबसे अधिक मामले अलवर जिले के लंबित चल रहे हैं। यहां एक साथ पांच शहीदों के नाम पर स्कूलों का नाम रखा जाना है। जबकि भरतपुर जिले में तीन स्कूल शहीद नामकरण की बाट जोह रही हैं।

 


72 स्कूलों के प्रस्ताव पारित

गौर करने वाली बात यह भी है कि राज्य में शहीदों के नाम पर स्कूलों का नाम रखे जाने के 72 प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं। लेकिन, सरकार अभी तक इनकी सुध भी नहीं ले रही है। जबकि जनप्रतिनिधियों का दावा है कि प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। मंशा है कि जल्द से जल्द से इन स्कूलों का नाम शहीदों के नाम पर कर दिए जाएं तो आगे आने वाली पीढ़ी को भी देश सेवा के प्रति जागरूक किया जा सकता है।


शेखावाटी के ये है हालात
शेखावाटी के सीकर जिले में फतेहपुर की एक स्कूल शहीद के नाम से लंबित चल रही है। चूरू में सादुलपुर की एक व झुंझुनूं में पिलानी व दूसरी स्कूल शहर की शामिल है। जिसका नामकरण शहीद के नाम पर होना है। इसके अलावा प्रस्ताव पारित होने वाली स्कूलों में सीकर की आठ, झुंझुनूं की सात व चूरू की चार स्कूलों का नाम शहीद के नाम पर कर दिए जाने का प्रस्ताव कब का पारित हो चुका है। प्रस्ताव पारित होने के बाद भी भरतपुर में 11 व अलवर में नौ स्कूलों के नाम पर सर्व सम्मति से प्रस्ताव लिए जा चुके हैं।


परिवारों का कहना
शहीद परिवारों का मानना है कि उनके बेटे ने तो बलिदान देकर मातृभूमि का कर्ज उतार दिया। अब गेंद सरकार के पाले में है। यदि सरकार इनकी शहादत को सम्मान देना चाहती है तो उसे इस काम को जल्द पूरा करना चाहिए। क्योंकि शहादत की अनदेखी के कारण परिवार के लोगों में भी आक्रोश है।

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