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राष्ट्रीय बालिका दिवस: हालातों की बेडिय़ां तोडकर कामयाबी की फलक तक पहुंचना चाहती है ये बेटियां

हाउसिंग बोर्ड स्थित कच्ची बस्ती की बेटियां कभी मुफलिसी से भरी जिंदगी में कचरा बीनने से लेकर घर-घर मांगने को मजबूर थी।

सीकरJan 24, 2018 / 11:51 am

vishwanath saini


सीकर. हाउसिंग बोर्ड स्थित कच्ची बस्ती की बेटियां कभी मुफलिसी से भरी जिंदगी में कचरा बीनने से लेकर घर-घर मांगने को मजबूर थी। लेकिन, अब सिलाई सीखने के साथ वे न केवल कौशल विकास का कोर्स भी कर रही हैं बल्कि, गरीबों का तन ढकने का ख्वाब भी बुन रही है। उन्हीं में से कुछ बेटियों से आज हम आपको बिटिया दिवस पर रुबरु करवा रहे हैं, जो कामयाबी के फलक के लिए हौंसलो के पर फैला चुकी है और अपनी ही जुबां मेें संदेश भी देना चाहती हैं…
एक सही सोच इंसान की नियति बदल देती है… बशर्ते कि उस सोच को अमलीजामा पहनाने की जिद जुनून की हद तक हो। हालातों की बेडिय़ां या अपनों की मुखालफत भी राह में हो, तो भी वह इरादों से नहीं डिगे। प्रेरणा की यह पंक्तियां कच्ची बस्ती की उन बेटियों की जानिब से है, जिनकी सुध लेने का समय बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का महज नारों के जरिए दंभ भरने वाली सरकार और प्रशासन तक को भी अब तक नहीं मिला। बस कुछ समाज सेवकों ने उन्हें दिशा दी और आज उन बेटियों ने खुद ही अपनी दशा को जीवन की एक नई दिशा में मोडऩे का बीड़ा उठा लिया।
प्रियंका…
कचरा बीनती थी अब बनना चाहती है काबिल
पहले कचरा बीनने का काम करती थी। माता पिता के साथ चादर भी बेचती थी। कुछ महीनों में ही सिलाई सीख वह सूट, डिज़ाइनर फ्रॉक, और लहंगा आदि सिल लेती है। कहती है कि पुराने काम से छुटकारे के लिए उसने यह कदम उठाया। चाहती है कि काबिल बनकर परिवार को गरीबी से आजाद कराए।
पूजा…
गलियों से निकल अब जिंदगी को मिली दिशा
गलियों में कूड़ा कचरा बीनती थी। दो साल से सिलाई सीख कर अब बारह कली और अंब्रेला कट लहंगे के साथ सलवार सूट और हर तरह के कपड़े सिलने में सिद्ध हस्त हो गई है। कहती है कि अब उसे अपनी जिंदगी की नई दिशा मिल गई है। चाहती है कि ओर किसी बेटी को उसका पुराना काम नहीं करना पड़े।
पिंकी…
मां के साथ घर-घर जाकर करती थी काम
अ पनी मां के साथ घर घर जाकर काम करती थी। लेकिन, अब सिलाई सीखने के बाद वह सलवार सूट, लहंगा, कुर्ता और छोटे बच्चो की टोपियां बनाने लगी है। अपने बनाए कपड़ों से वह हर गरीब का तन ढकना चाहती है। वह चाहती है कि कोई भी गरीबी में ना रहे, सबकों संबल मिले।
आशु…
माता-पिता का बनना चाहती है सहारा
क भी मां- बाप के साथ कचरा बीनने वाली आशु भी 2 साल से सिलाई सीख रही है। सलवार सूट, कमीज, लहंगा समेत हर तरह के कपड़े सिलने में माहिर हो चुकी आशु का कहना है कि हर बेटी को लायक बनकर अपने मां- बाप का सहारा बनना चाहिए। जिससे वह दूसरों की भी मदद कर सके।
तकदीर बदलने में यह बन रहे कर्णधार
श्रवण थालौड़: जमनालाल बजाज आईआईटी निदेशक श्रवण थालौड़ ने ही कच्ची बस्ती में सबसे पहले सिलाई केंद्र की नींव रखी। कच्ची बस्ती की 18 बेटियों को वे सिलाई का प्रशिक्षण दिला रहे हैं।
सोभासरिया गु्रप: कच्ची बस्ती में सिलाई केंद्र की जानकारी के बाद सोभासरिया गु्रप के घनश्याम सोभासरिया ने यहां सिलाई की 13 मशीनें उपलब्ध करवा केंद्र को आगे बढ़ाने में मदद की।
मनसुख रणवां स्मृति संस्थान: संस्थान अध्यक्ष दुर्गा रणवां और सचिव अभिलाषा रणवां समय समय पर केंद्र को कपड़ा और अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराते हैं। मॉनिटरिंग भी करते हैं।
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