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सीकर

वन विभाग ने चौकियां तो बना दी, लेकिन अब इनमें गार्ड का रहना तो दूर, जरूरी दस्तावेज तक रखना हुआ मुश्किल

. वन भूमि की सुरक्षा के लिए बनी वन चौकी और नाके का अस्तित्व खतरे में है

सीकरJun 22, 2018 / 01:29 pm

vishwanath saini

forest guard rest room

वन विभाग ने चौकियां बना तो दी, लेकिन अब इनमें गार्ड का रहना तो दूर जरूरी दस्तावेज तक रखना मुश्किल


सीकर. वन भूमि की सुरक्षा के लिए बनी वन चौकी और नाके का अस्तित्व खतरे में है। हाल है कि वन विभाग ने चौकियों को बना तो दिया लेकिन मरम्मत और देखरेख नहीं होने से चौकियां व नाके जर्जर हो चुके हैं। हाल ये है कि वन और वन्य जीवों की रक्षा के लिए प्रादेशिक वन मंडल और वन्य जीव मंडलों के अधीन बनी चौकियों की पिछले पांच दशक ने विभाग ने सुध तक नहीं ली। कई वन चौकियों व नाका भवनों के गैर वन भूमि में होने से विभाग के नाम भूमि के नामांतरण के लिए पत्रावलियां लेकर जिला प्रशासन के पास चक्कर लगा रहा है।


ये काम प्रभावित
वनभूमि पर छंगाई, अवैध खनन अतिक्रमण, कटाई सहित वन सम्पदा की चोरी को रोकने के लिए वन चौकियां व नाका भवन बनाए गए हैं। इन चौकियों पर केन्द्र सरकार की गाइड लाइन के अनुसार स्टॉफ भी नहीं है। ऐसे में विभाग भी इनकी सुध नहीं लेता है। यही नतीजा है कि जिले में आबादी क्षेत्र में सटकर बनी कई वन चौकियां व नाका भवनों पर अतिक्रमण तक हो चुके हैं।

 

 

जिले में 20 चौकी
जिले की सात रेंज में फैले वन क्षेत्र में वन विभाग की 20 चौकी व 11 वन नाका बने हुए है। वन विभाग ने 1980 में नीमकाथाना में दो, पाटन में दो, खंडेला व श्रीमाधोपुर में क्रमश: एक-एक सीकर में दो, लक्ष्मणगढ व फतेहपुर में एक-एक, अजीतगढ़ में एक वन नाका बनाया हुआ हैं। वन विभाग में प्रत्येक पांच वर्ष के बाद बदलती योजनाओं के दौरान वन चौकियां बनाई गई। वर्तमान में सातों रेंजों में 20 वन चौकी बनी हुई है। पुराने जर्जर भवन होने के कारण इनमें केटल गार्ड का रहना तो दूर जरूरी दस्तावेज तक रखना मुश्किल है। हालांकि वन विभाग प्रत्येक वन्यजीव गणना के दौरान इन चौकियों की सफाई करवाता है।


नाममात्र
-वन चौकियों व नाके की मरम्मत के लिए कभी-कभार नाममात्र का बजट आता है। पुराने भवन होने के कारण इस बजट में इनकी पूरी तरह मरम्मत नही हो पाती है। गैर भूमि मे बनी चौकियों की पत्रावलियों को जिला प्रशासन के पास भेजा गया है।
राजेन्द्र हुड्डा, उपवन सरंक्षक, सीकर

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