घोड़े से दूसरे पशुओं और मनुष्यों में फैलती है बीमारी ग्लैंडर्स बीमारी आमतौर पर घोड़ों में होती है। इस वायरस की चपेट में आने से घोड़े की नाक से तेज पानी बहने लगता है। शरीर पर फफोले हो जाते हैं। श्वास लेने में परेशानी होती है। बुखार आने के कारण घोड़ा सुस्त हो जाता है। यह बीमारी संक्रमित दूसरे पशुओं और पास में रहने वाले मनुष्यों को भी हो सकती है।
मौत ही उपचार, 25 हजार का मुआवजा पशुपालन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ग्लैंडर्स पॉजीटिव मिलने पर मौत ही उपचार है। पोजीटिव पशु को वैज्ञानिक तरीके से हाईडोज दवा देकर मौत के घाटा उतारा जाता है। साथ ही घोड़ा पोजीटिव पाए जाने के पांच किलोमीटर क्षेत्र के पशुओं का ग्लैंडर्स जांच के लिए नमूना लिया जाता है। पशु से इंसान में फैलने वाला रोग होने के कारण संक्रमित घोड़े की देखभाल करने वाले पशु पालक की भी जांच की जाती है। यह घोड़े के बाद गधे और खच्चर में तेजी से फैलता है।
यहां पर ना जांच ना उपचार ग्लैंडर्स रोग का पता लगाने के लिए प्रदेश में जांच और उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। पशुपालन विभाग के अधिकारी नमूने लेकर हिसार स्थित अश्व अनुसंधान केन्द्र में भिजवाते हैं। इसकी जांच भी दो चरणों में की जाती है। इसके बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाता है। पशु को भी तीन रिपोर्ट के बाद पूरी तरह से स्वस्थ्य माना जाता है।
मौत पर 10 फिट गहरे खड्डे में दफनाने का प्रावधान ग्लैंडर्स को खतरनाक बीमारी माना जाता है। इससे संक्रमित होने पर घोड़े व अन्य पशुओं को दस फिट गहरा खड्डा खोदकर दफनाने का प्रावधान है। मृत पशु को सामान्य तरीके से दफनाने पर भी यह वायरस क्षेत्र को संक्रमण की चपेट में ले सकता है। एहतियात के तौर पर प्रदेश में घोड़ों की संख्या के कुल 20 फीसदी के नमूने लेने का प्रावधान है।
इनका कहना है…बड़बर गांव के किसान के दो घोड़ों में ग्लैंडर्स रोग पाया गया है। इन दोनों घोड़ों की 15 दिन पहले ही मौत हो गई है। विभाग पशुपालक के तीन अन्य पशु सहित पांच किलोमीटर क्षेत्र के पशुओं के नमूने लेकर जांच के लिए हिसार भेजे हैं। इन में कुछ की रिपोर्ट नेगेटिव प्राप्त हुई है। लोगों को जागरूक करने के लिए विभाग की ओर से अभियान चलाया जा रहा है। यह रोग घोड़ों से मनुष्यों में भी फैल सकता है। डॉ. रामेश्वर ङ्क्षसह संयुक्त निदेशक पशुपालन, झुंझुनूं