राजस्थान के 12 जिलों में लापरवाही के ट्रेक पर करोड़ों की ड्राइविंग
सड़क हादसों में कमी लाने को लेकर सरकार की ओर से खूब वादे किए जा रहे रहे हैं। लेकिन ज्यादातर सरकारी दावे घोषणाओं तक सीमित है।

सीकर. सड़क हादसों में कमी लाने को लेकर सरकार की ओर से खूब वादे किए जा रहे रहे हैं। लेकिन ज्यादातर सरकारी दावे घोषणाओं तक सीमित है। तीन साल पहले सरकार ने प्रदेश के 13 जिलों में स्वचालित टै्रक बनाने की घोषणा की थी। लेकिन तीन साल बाद भी प्रदेश की राजधानी जयपुर को छोड़कर कही भी काम पूरा नहीं हो सका है। सरकार की ओर से कोरोना की वजह से काम पूरा नहीं होने का तर्क दिया जा रहा है। लेकिन हकीकत में यह परिवहन विभाग की बड़ी लापरवाही है। ट्रैक बनाने वाले कंपनी को एक साल में महज दो बार पत्र लिखकर चेताया गया। काम पूरा नहीं होने पर भी चेतावनी नोटिस देकर मई 2021 तक की अवधि बढ़ा दी है। प्रदेश में सीकर के अलावा भरतपुर, बीकानेर, कोटा, अलवर, चित्तौडगढ़, पाली, उदयपुर, दौसा व झालावाड़ जिले में अभी तक काम पूरा नहीं हो सका है। इधर, सामाजिक संस्थाओं का तर्क है कि विभाग की ओर से विभाग की ओर से दलाली प्रथा को खत्म नहीं करने की वजह से काम में देरी की जा रही है।
चालकों की परीक्षा में नहीं होगा फर्जीवाड़ा
स्वचालित टै्रक बनने से नए वाहन चालकों को लाईसेंस देने के कायदों में फर्जीवाड़ा नहीं हो सकेगा। कई जिलों में चौपहिया लाईसेंस देने में हुए फर्जीवाड़े की शिकायत हुई थी। इसके बाद परिवहन विभाग ने सभी जिला परिवहन कार्यालयों में स्वचालित टै्रक बनाने की घोषणा की थी।
प्रदेश में छह लाख से ज्यादा आवेदन
प्रदेश में हर साल लईसेंस के लिए छह लाख से अधिक आवेदन जमा होते है। ऐसे में परिवहन कार्यालयों में बढ़ते आवेदनों की वजह औसत 20 से 30 दिन का समय लिया जा रहा है। ऐसे में स्वचालित टै्रक बनने से परिवहन विभाग को राहत मिलेगी। स्वचालिक ट्रैक का काम पूरा होने के बाद सभी जिलों में एक निजी कंपनी को ठेका दिए जाने की योजना है।
आरएसआरडीसी को दिया था जिम्मा
प्रदेश के 13 जिलों में स्वचालित टै्रक बनाने का जिम्मा परिवहन विभाग की ओर से आरएसआरडीसी को दिया गया था। लेकिन निर्माण एजेंसी की ओर से 12 जिलों में काम पूरा नहीं हो सका।
ट्रायल परीक्षा पास करते ही आएगा मैसेज
स्वचालित ट्रैक पर वाहन चालकों के परीक्षा में पास होते हुए विभाग के पास भी सूचना आएगी। विभाग का दावा था कि यह योजना शुरू होते ही लाईसेंस बनाने की व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। पहले चरण की योजना में देरी होने की वजह से दूसरे चरण की योजना में भी देरी हो रही है।
38 फीसदी हादसे नियम तोडऩे की वजह से
विभिन्न सर्वो में प्रदेश में हर साल 38 फीसदी सड़क हादसों में वाहन चालकों की लापरवाही सामने आई थी। ऐसे में यदि वाहन चालकों को लाईसेंस जारी करते समय सही तरीके से प्रशिक्षण दिया जाए तो सड़क हादसों में कमी लाई जा सकती है। इसी मकसद से राज्य सरकार ने इस योजना को शुरू करने की बात कही थी।
किस जिले को कितना मिला था बजट
अलवर: 203 लाख
सीकर: 128.76 लाख
भरतपुर: 95 लाख
बीकानेर: 138.50
चित्तौडगढ़: 185.26
दौसा: 127.09
झालावाड़: 75 लाख
जोधपुर: 160.22
कोटा: 126 लाख
पाली: 94.36 लाख
उदयुपुर: 105.22 लाख
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