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अब विदेश से 54 महीने से कम डॉक्टरी की पढ़ाई मान्य नहीं, एनएमसी की अधिसूचना जारी

नैक्स्ट पास करने के बाद भारत में भी करनी होगी एक साल इंटर्नशिपअजय शर्मा

सीकरNov 26, 2021 / 11:55 pm

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कई देशों ने नहीं बदला पैटर्न तो बढ़ेगी भारतीय विद्यार्थियों की मुसीबत


सीकर.
एनएमसी के नए प्रावधानों से भारतीय विद्यार्थियों को डॉक्टर बनाने का सपना पूरा करने वाले कई विदेशी मेडिकल कॉलेजों की मुसीबत बढ़ जाएगी। एनएनसी ने पिछले दिनों राजपत्र के जरिए एक अधिसूचना जारी की है। इसमें साफ कहा कि विदेश से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को अब न्यूनतम 54 महीने की अवधि वाली डिग्री हासिल करना आवश्यक है। इसके अलावा एक साल की इंटर्नशिप वहां रहकर करनी होगी। जबकि एक साल की इंटर्नशिप भारत में भी करनी होगी। नैक्स्ट परीक्षा पास करने के बाद ही विदेश से डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद यहां पंजीयन हो सकेगा। इधर, विद्यार्थियों का आरोप है कि एनएमसी की ओर से विदेश जाने वाले विद्यार्थियों के लिए लगातार नए कानून बनाए जा रहे हैं। जबकि नैक्स्ट परीक्षा के सिलेबस सहित अन्य बिन्दुओं को लेकर अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है। एनएमसी के हिसाब से कई देशों ने यदि अपने यहां डॉक्टरी की पढ़ाई का पैटर्न नहीं बदला तो वहां भारतीय विद्यार्थियों की मुसीबत बढ़ जाएगी। एनएमसी की ओर से इसे फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंटशिएट रेगुलेशंस, 2021 का नाम दिया है।—-ज्यादा वक्त लगेगा, नीट और नैक्स्ट दोनों जरूरीभारत से डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों की पढाई व इंटर्नशिप लगभग साढ़े पांच साल में पूरी होगी। जबकि विदेश से पढ़ाई करने वालों को अब लगभग साढ़े छह साल का वक्त लगेगा। नीट के बिना विदेश व भारत में प्रवेश नहीं मिलेगा। कोर्स पूरा होने पर नैक्स्ट परीक्षा देनी होगी।

नए प्रावधान एक नजर में
-भारत में तब तक कोई भी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट मेडिसिन की प्रैक्टिस नहीं कर सकता है, जब तक कि नियमों के अनुसार उसे यहां का स्थाई रजिस्ट्रेशन प्रदान नहीं कर दिया गया हो।
-जो भी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स भारत में स्थाई रजिस्ट्रेशन हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए यह जरूरी कर दिया गया है कि उन्होंने विदेश में कम से कम 54 महीने की अवधि वाले मेडिकल कोर्स को पूरा करके डिग्री हासिल की हो।
-उसी फॉरेन मेडिकल कॉलेज या यूनिवर्सिटी से कम-से-कम 12 महीने की इंटर्नशिप।
-अंग्रेजी भाषा में विदेश से मेडिकल की पढ़ाई की डिग्री।
-जिस देश में स्टूडेंट्स ने मेडिकल की पढ़ाई की है, उस देश में वहां के प्रोफेशनल रेगुलेटरी बॉडी के साथ उनका रजिस्टर्ड होना जरूरी है। या फिर उस देश में उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस बिल्कुल उन्हीं मानकों पर खरा उतरने के आधार पर मिला होना चाहिए, जिस आधार पर उस देश के नागरिकों को मेडिसिन की प्रैक्टिस के लिए वहां लाइसेंस प्रदान किया जाता है।
-स्टूडेंट्स का भारत में एनएमसी के समक्ष आवेदन करने के पश्चात और कमीशन की तरफ से लिए जाने वाले नेशनल एग्जिट टेस्ट में उत्तीर्ण होने के बाद भारत में भी अनिवार्य रूप से कम-से-कम 12 महीने की इंटर्नशिप।

इन पर लागू नहीं होंगे प्रावधान
अधिसूचना में बताया गया है कि नए नियम उन फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स पर लागू नहीं होंगे, जिन्होंने नए नियमों के लागू होने से पहले ही फॉरेन मेडिकल डिग्री या प्राइमरी क्वालिफिकेशन को हासिल कर लिया है। इसके अलावा जो उम्मीदवार नियमों के लागू होने के पहले से ही विदेशी संस्थानों में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, उन पर भी नए नियम लागू नहीं होंगे। यदि नेशनल मेडिकल कमीशन या फिर केंद्र सरकार की तरफ से कुछ फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स को छूट दी गई है, तो वे भी इन नियमों के दायरे में नहीं आएंगे।

एक्सपर्ट व्यू
गुणवत्ता में सुधार होगा
विदेश से डॉक्टरी की पढ़ाई में एनएमसी के नए अध्यादेश के बाद एकरूपता आ सकेगी। इससे गुणवत्ता में भी सुधार होगा। पढ़ाई और इंटर्नशिप का समय बढऩे के बाद विद्यार्थियों को उस क्षेत्र में नया भी सीखने को मिलेगा।
डॉ. पीयूष सुण्डा, एक्सपर्ट
छात्र हित में सरकार करें दुबारा विचार
बीच सत्र में इस तरह का कानून लाना गलत है। जब भारत में डॉक्टरी की पढ़ाई साढ़े पांच साल में पूरी होगी तो विदेश की क्यों नहीं? इन नियमों पर भारत सरकार को दुबारा से छात्र हित में विचार करना चाहिए।
वेदप्रकाश बेनीवाल, जयपुर
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