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खुशखबर: रसायनिक फल-सब्जी से मिलेगी मुक्ति, राजस्थान में यहां तीन हजार हेक्टेयर में बनेगा जैविक जोन

locationसीकरPublished: Jul 06, 2020 10:22:48 am

Submitted by:

Sachin

सीकर. कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण न केवल हमारी भूमि जहरीली हो रही है। बल्कि, रसायन व एंजाइम के असंतुलन के कारण लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

खुशखबर: रसायनिक फल-सब्जी से मिलेगी मुक्ति, राजस्थान में यहां तीन हजार हेक्टेयर में बनेगा जैविक जोन

खुशखबर: रसायनिक फल-सब्जी से मिलेगी मुक्ति, राजस्थान में यहां तीन हजार हेक्टेयर में बनेगा जैविक जोन

सीकर. कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण न केवल हमारी भूमि जहरीली हो रही है। बल्कि, रसायन व एंजाइम के असंतुलन के कारण लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। वजह फसलों व सब्जियों में कई किसान लाखों रुपए के कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं। सेहत से हो रहे खिलवाड़ को देखते हुए सरकार ने कृषि विभाग के जरिए राजस्थान के सीकर जिले में तीन हजार हेक्टेयर में जैविक जोन बनाने का निर्णय किया है। सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में रसायनयुक्त फल व सब्जी से आमजन को निजात मिल सकेगी। कृषि विभाग की माने तो सीकर जिले में प्रतिवर्ष 30 हजार मीट्रिक टन उर्वरक की खपत होती है।

 

ऐसे बनेगा जैविक जोन


रसायनिक खाद से बंजर हो रही भूमि को बचाने के लिए जिले में कलस्टर बनाकर जैविक जोन बनाया जाएगा। तीन वर्ष तक लगातार जैविक खेती करने वाले किसानों को विभाग प्रमाणित करेगा। जैविक खेती को अपनाने वाले किसान से विभाग का अनुबंध होगा और किसान को इकाई लागत का पचास फीसदी अनुदान दिया जाएगा। यह अनुदान की राशि तीन किस्तों में देय है। प्रथम वर्ष चार हजार रुपए व दूसरे व तीसरे वर्ष में तीन-तीन हजार रुपए का अनुदान दिया जाएगा।


943 हेक्टेयर, 537 किसान

कृषि विभाग के अनुसार इस समय जिले में करीब 94 हेक्टेयर मेें 537 किसान जैविक खेती कर रहे हैं। इसके लिए किसान वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, जीवाणु खाद आदि का फसलों में प्रयोग कर रहे है और इसके बाद इन लोगों को राजस्थान जैविक प्रमाणीकरण संस्था की ओर से प्रमाण पत्र दिया गया है।

अंदाजे से डालते हैं रसायन

जिले में उर्वरक व कीटनाशकों की इस समय करीब 480 से ज्यादा दुकानें हैं। इन दुकानों में काम करने वाले लोग प्रशिक्षित नहीं होते हैं। कृषि अधिकारियों के अनुसार दुकानदार किसान की मानसिकता को भांपते हुए घातक लेकिन फसल के लिए गैर जरूरी रसायन भी थमा देते हैं। कई किसान तो बिना मिट्टी-पानी की जांच करवाए अंदाज से ही रसायन डालते हैं।

इनका कहना है
रसायन व उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण भूमि के साथ ही सेहत पर दुष्प्रभाव नजर आ रहा है। निदेशालय ने परम्परागत खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश के सभी जिलों में किसानों के समूह बनाकर कलस्टर खेती करने का लक्ष्य दिया है।

– एसआर कटारिया, उपनिदेशक कृषि

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