कविता: वक्त नहीं
हर ख़ुशी है लोगों के दामन पर एक हँसी के लिए वक़्त नहीं !
दिन रात दौड़ती दुनिया में ज़िंदगी के लिए ही वक़्त नहीं !

हर ख़ुशी है लोगों के दामन पर एक हँसी के लिए वक़्त नहीं !
दिन रात दौड़ती दुनिया में ज़िंदगी के लिए ही वक़्त नहीं !
माँ की लोरी का एहसास तो है पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं !
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके हैं अब उन्हें दफ़नाने का वक़्त नहीं !
सारे नाम तो मोबाइल में है और दोस्तीके लिए वक़्त नहीं !
अरे गैरों की क्या बात करे जब अपनों केलिए ही वक़्त नहीं !
आँखों में नींद बड़ी है पर सोने का भी वक्त नहीं !
ये दिल है गमों से भरा हुआ और रोने का भी वक़्त नहीं !
हाँ पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े की थकने का भी वक़्त नहीं !
पराये एहसान की क्या कद्र करे जब अपने सपनों के लिए ही वक़्त नहीं !
अब तू ही बता ऐ ज़िंदगी इस ज़िंदगी का क्या होगा !
कि हर पल मरने वालों को जीने के लिए भी वक़्त नहीं !
एवी॰सिंह पाटोदा
अब पाइए अपने शहर ( Sikar News in Hindi) सबसे पहले पत्रिका वेबसाइट पर | Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें Patrika Hindi News App, Hindi Samachar की ताज़ा खबरें हिदी में अपडेट पाने के लिए लाइक करें Patrika फेसबुक पेज