कविता: रिश्ते
रिश्ते बनाये नहीं जाते
बस सिर्फ और सिर्फ निभाये जाते हैं

रिश्ते बनाये नहीं जाते
बस सिर्फ और सिर्फ निभाये जाते हैं
हर रिश्ते की एक अलग इम्तिहान
होती है
जिन्दा रखने के लिए उसकी एक
पहचान होती है
इन्सान जिन्दगी जीने के लिए
रिश्ते बनाता है
पर रिश्ते निभाते हुए मर जाता है
रिश्ते वहीं की वहीं रह जाते हैं
इन्सान आते हैं और चले जाते हैं
कठिन है रिश्तों की पहचान करना
पहचान है तो सरल है निभाना
रिश्तों को "मैं" नहीं पहचानता
"" मैं "" ही तो हूँ जो नहीं जानता
जिन रिश्तों के फूल घर आंगन
में खिलते थे
आज वो "लतायें" पूर्वाई* सूख गई
रहे सहे पत्तों को भी
"पिछवाई"उड़ा के ले गयी
रह गये बेचारे सूखे डंठल
कोई उनको छूता नहीं है
किसी ने नीचे गिर कर रगडन से
स्वयं को मिटा लिया
तो किसी ने स्वयं को बना लिया बंडल
कहते हैं कि रिश्ते मिट गये
सिर्फ सिमट कर रह गये
पर रिश्तों की जड़ें आज भी हैं
वो सूखी नहीं है
हरि हैं पर हरी नहीं हैं
रिश्तों को जिन्दा रखने के लिए
निभाना होगा
उन जड़ों को संस्कारी पानी से
सींचना होगा
और इसके लिए हमको
चन्दा मामा की कहानी सुनने
दादा दादी के पास बैठना ही होगा
हीरालाल कंचनपुर,अध्यापक
अब पाइए अपने शहर ( Sikar News in Hindi) सबसे पहले पत्रिका वेबसाइट पर | Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें Patrika Hindi News App, Hindi Samachar की ताज़ा खबरें हिदी में अपडेट पाने के लिए लाइक करें Patrika फेसबुक पेज