ऐसे शुरू हुआ मैराथन का सफर
गोवा में पदक जीतने वाले संजीव कुल्हरी ने बताया कि सात साल पहले वह गंभीर बीमारी से पीडि़त हो गए। चिकित्सकों ने ज्यादा दौड़-भाग से दूर रहने की सलाह दी। लेकिन कुल्हरी ने शुरूआत में नियमित रुप से दो से चार किलोमीटर दौडऩा शुरू किया। इससे उनकी अस्थमा की बीमारी पूरह तरह आऊट हो गई। वहीं ऑपरेशन के बाद शरीर में रिकवरी भी काफी तेजी से हुई। इसके बाद उन्होंने दिनचर्या से लेकर खानपान की आदतों को पूरी तरह बदल लिया।
5.15 घंटे में सालासार पहुंचकर बनाया रेकार्ड
अभ्यास की मजबूती के लिए वह रविवार या अन्य छुट्टी के दिनों में लंबी मैराथन के लिए निकल जाते है। वह सीकर से सालासर की लगभग 50 किलोमीटर की मैराथन 5.15 घंटे में पूरा कर रेकार्ड बना चुके है। वहीं 2019 व 2020 में जयपुर व दिल्ली में हुई विभिन्न मैराथन में भी वह पदक जीतकर कई रेकार्ड अपने नाम कर चुके है।
घर-परिवार में कोई भी काम, नहीं छोड़ते अभ्यास
पढ़ाई या हो खेल नियमित अभ्यास ही सफलता की पहली कड़ी है। इस पक्ति को आदर्श मानने वाले युवा का कहना है कि कई बार घर-परिवार में सुबह आवश्यक काम भी आते हैं। लेकिन उन्होंने सात साल में कभी भी मैराथन को नहीं छोड़ा। इसके लिए कई संस्थाओं की ओर से उनका सम्मान भी हो चुका है।
संदेश: बीमारियों को हराना है तो खुद के लिए समय निकालें
पत्रिका से खास बातचीत में कुल्हरी ने बताया कि खानपान और अनियमित दिनचर्या की वजह से युवा पीढ़ी भी बीमारियों की चपेट में आ रही है। ऐसे में युवाओं को अपने कॅरियर, मनोरंजन के साथ-साथ खुद अपनी सेहत के लिए भी समय प्रतिदिन निकालना होगा। उनका कहना है कि मैराथन ऐसा व्यायाम है जिसमें किसी तरह के संसाधन की जरूरत नहीं है। सुबह या शाम को छह से सात किलोमीटर की नियमित मैराथन कर अपने आप को पूरी तरह स्वस्थ्य और फिट रखा जा सकता है।