इसलिए बढ़ रहा फर्जीवाड़ा
1. बच्चे के नाम काटने का कोई नियम नहीं
आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चे के नामांकन के दौरान अभिभावकों से एक शपथ पत्र लिया जाता है कि बच्चे का दूसरे आंगनबाड़ी केन्द्र या स्कूल में नामांकन नहीं है। कोरोना गाइडलाइन की वजह से जो बच्चे नहीं आ रहे हैं उनके नाम काटने की कोई गाइडलाइन नहीं है।
2. योजनाएं आधार से लिंक, लेकिन नामांकन नहीं
सरकारी व निजी स्कूलों के बच्चों का नामांकन आधार से लिंक कर दिया गया है। महिला एवं बाल विकास विभाग की दस से अधिक योजना भी आधार से जुड़ गई है, लेकिन विभाग की ओर से बच्चों के नामांकन को आधार से लिंक नहीं कराया गया। इसके लिए पिछले दिनों महिला पर्यवेक्षकों को प्रशिक्षण भी दिया गया। इसके बाद बच्चों के आधार कार्ड बनाने की योजना कुछ ब्लॉकों में ही शुरू हो सकी।
3. पढ़ाई के लिए स्कूल, पोषाहार के लिए आंगनबाड़ी
बच्चों को अब प्री प्राइमरी से ग्रामीण व शहरी अभिभावक स्कूल भेजना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इनमें से कुछ अभिभावक राशन की चाह में अपने बच्चों का नामांकन केन्द्रों पर भी करा रहे हैं।
बच्चों के पोषाहार पर भी डाका
केस एक: सीकर में पिछले महीेने 50 लाख का घपला
सीकर जिले के श्रीमाधोपुर, खंडेला व नीमकाथाना ब्लॉक में पिछले महीने ही 50 लाख रुपए का घपला सामने आया है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की शिकायत पर मामले का खुलासा हुआ। ठेकेदार की ओर से श्रीमाधोपुर थाने में मामला दर्ज कराया गया। कई महीनों से पोषाहार ही कम सप्लाई हो रहा था।
केस दो: कोटा में भी सामने आ चुका खेल
कोटा जिले की कई परियोजनाओं में खेल सामने आया है। यहां प्रति केन्द्र दो से तीन किलो सूखा राशन कम देने की शिकायत हुई है। इनमें से कुछ शिकायतों की अभी तक जांच जारी है। प्रदेश के 15 जिलों में खराब गुणवत्ता की दाल को लेकर भी जमकर विवाद हुए।
नामांकन में एेसे चल रहा फर्जीवाड़ा
भीलवाड़ा: मनमर्जी की हाजिरी, जांच व्यवस्था मजाक
रायपुर कस्बे में संचालित आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों की हाजिरी व्यवस्था मजाक है। यहां पत्रिका टीम को चार आंगनवाड़ी केंद्रों में से दो केंद्रों पर चार-चार बच्चे बैठे मिले। एक आंगनवाड़ी केंद्र पर तो एक भी बच्चा नहीं था। एक अन्य पर तो सुबह नौ बजे तक ताले लटके थे।
प्रतापगढ़: 25 में से तीन ही बच्चे मिले
बगवास कच्ची बस्ती में स्थित इस केन्द्र में नामांकन का पंजीयन 25 बच्चों का है। लेकिन पत्रिका टीम को तीन ही बच्चे मिले। जिले के अन्य केन्द्रों पर उपस्थिति का आंकड़ा कोरोना के बाद कम हुआ है। हालांकि कार्यकर्ताओं का कहना है कि गर्मी का भी असर है।
डूंगरपुर: आधे बच्चे भी नहीं मिले
साबला ब्लॉक में भी नामांकन का खेल पत्रिका टीम के सामने आया। गड़ा अरेडिया में 11 में से चार तथा गमेला रिंछा में 31 में से 15 की ही उपस्थिति मिली।
सवाईमाधोपुर: नामांकन 128, उपस्थित मिले 8
खैरदा स्थित लवकुश कॉलोनी में पंजीयन 128 का है। यहां महज 8 ही बच्चे मिले। सीकर जिले के दस से अधिक केन्द्रों की पड़ताल की तो यहां भी उपस्थिति का आंकड़ा काफी कम मिला। जहां 17 बच्चे पंजीकृत है वहां उपस्थिति आठ ही मिली।
विपक्ष: केन्द्रों पर सुविधा नहीं, ऑनलाइन मॉनिटरिंग भी बंद
आंगनबाड़ी केन्द्रों को मॉडल के तौर पर विकसित कर पूर्व प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को मजबूत किया गया। जिससे नामांकन बढ़ा था। अब केन्द्रों पर वजन तुलने की मशीनें भी खराब पड़ी है। खिलोना बैंक की योजना भी दम तोड़ चुकी है। पहले नामांकन की हकीकत जानने के लिए वाट्सएप गु्रपों के जरिए हर आंगनबाड़ी केन्द्र की फोटो मंगवाई जाती थी। लेकिन अब मानदेयकर्मियों को मोबाइल रिचार्ज के पैसे नहीं मिलने से यह योजना भी बंद हो गई।
अनिता भदेल, पूर्व महिला एवं बाल विकास मंत्री
सत्ता पक्ष: अगले महीने तक मशीनें, 750 करोड़ से बदलेगी सूरत
प्रदेश के 25 हजार केन्द्रों की 750 करोड़ से सूरत बदली जाएगी। इन केन्द्रों पर नंदघर योजना के तहत सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी। जल्द ही वजन तुलने वाली नई मशीनें भी उपलब्ध होगी।
- ममता भूपेश, महिला एवं बाल विकास मंत्री, (पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा)
राजस्थान में 1975 से हुई थी शुरुआत
प्रदेश में राष्ट्रीय बाल नीति 1974 के सिद्धांतों की पालना करते हुए राज्य सरकार ने 2 अक्टूबर 1975 को बांसवाड़ा की गढी पंचायत समिति से आंगनबाड़ी की शुरुआत की थी। वर्तमान में 304 परियोजना संचालित हैं। इनके जरिए 62 हजार से अधिक आंगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है।