हरे हैं जख्म
दामिनी की मां का कहना है कि सालों पुरानी घटना को याद करके उसकी बेटी आज भी सहम जाती है। जब-तक सरकार दामिनी का कोई बंदोबस्त नहीं करके देती तब-तक समाज के ठेकेदार इन जख्मों को कुरेदने से बाज नहीं आएंगे। अब बूढ़ी होने पर उसकी हड्डियां भी जवाब देने लगी है। चिंता सताती है कि उसके बाद उसकी लाडो का क्या होगा और बिना रोजगार के बूते वह अपना पेट कैसे भरेगी।
गांव में भी कुछ नहीं बचा
बलात्कार का सदमा झेल रहे पीडि़त परिवार का कहना है कि घटना के बाद गांव वालों ने भी उनका साथ छोड़ दिया है और घर के मुखिया की मौत हो जाने पर उनके हिस्से की जमीन भी उनको नहीं मिली। यहां किसी को कहने पर टिका-टिप्पणी सुनने को मिल रही है। जबकि उनको अब रैन बसेरा भी खाली करने के लिए कहा जा रहा है।
दाने-दाने को मोहताज
खुद का घर नहीं होने पर दामिनी और उसकी मां रैन बसेरे में अपना जीवन काट रहे हैं। पीडि़त परिवार का कहना है कि 2012 में बलात्कार की घटना के बाद शहर के लोगों से जो मदद मिली वह तो इलाज में खर्च हो गई। ऐसे अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा है। बूढ़ी मां पड़ौसी में झाड़ू-पोचा कर दो जून की रोटी जुटा रही है।