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सुविधाओं के अभावों में जीत के झंडे गाड़ती शेखावाटी की ये बेटियां भी किसी लडक़ों से कम नही, जानिए इनकी संघर्ष की कहानी

locationसीकरPublished: Feb 20, 2018 06:21:48 pm

Submitted by:

Vinod Chauhan

सुविधाओं के अभावों के बीच क्रिकेट की पीच पर झंडे गाड़ती बेटियां।

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सीकर.

सुविधाओं के अभावों के बीच क्रिकेट की पीच पर झंडे गाड़ती बेटियां। जिनकी चौके-छक्कों की बौछार देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बॉल को बाउंड्री लाइन के पार पहुंचाने में ये किसी से पीछे नहीं हैं। जबकि इनके माता-पिता ने हाथों में तगारी उठाकर और खेत में मजदूरी कर इनको यहां तक बढ़ाया है। इन बेटियों का मानना है कि यदि इनको बेहतर सुविधाएं मिलतीं तो आज ये भी भारतीय टीम की शोभा बनती और इतिहास रचकर देश का नाम रोशन कर रही होती।


जी हां, बहू झोलरी झझर हरियाणा की यह बेटी रूमा राठौड़ जो कि, हमेशा टीम में ऑपनर बेट्समैन के तौर पर मैदान पर उतरती है। डेढ़ साल पहले खेल की शुरूआत की। पिछली साल अंडर 19 में स्कूली नेशनल में सैकंड पोजिशन हासिल करने के बाद बीसीसीआई से अंडर 19 में हरियाणा क्रिकेट एसोसिशन से मैचों में भाग लिया। परिवार का खर्च चलाने के लिए मां मुनेश राठौड़ मजदूरी करने पर मजबूर हैं। रूमा के पिता रामवतार सिंह राठौड की 15 साल पहले मौत हो गई। परिवार की स्थिति बहुत कमजोर हैं। जमीन का एक कतरा नहीं हैं। बड़ी बहन की शादी हो गई। छोटा भाई है, जो पढ़ाई कर रहा हैं। रूमा की पढ़ाई सरकारी स्कूल से हुई। इंडियन क्रिकेट टीम से खेलने का सपना लिए दिन रात मेहनत कर रही हैं।


परिवार व समाज का रहा नकारात्मक रूख
प्रतिभा को तराशकर उसे मुकाम तक पहुंचाने के लिए समाज को अपनी सोच में बदलाव लाते हुए आगे आना होगा। अभावों एवं विपरीत परिस्थतियों के बावजूद जयपुर जिले में आमेर तहसील के पूनाना गांव की सामान्य परिवार में जन्मी सोनिका शर्मा पुत्री राजकुमार शर्मा ने समाज एवं परिवार की ओर से क्रिकेट खेल के प्रति नकारात्मक रूख होने के बावजूद हिम्मत, धैर्य और साहस के बल पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में कामयाब हुई है। लडक़ों के साथ खेलकर व प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली सोनिका कई खेल प्रतियोगिता में भाग ले चुकी है। बातचीत के दौरान उसने बताया कि खेल में जिस कदर राजनीति व भाई भतीजावाद हावी है उसके चलते कई प्रतिभाएं तो उभर कर सामने ही नहीं आ पाती है। खेलों में महिलाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आवश्यकता है तो बस इतनी कि इन्हें समान नजरिये व मान सम्मान के साथ देखा जाएं। गौरतलब है कि सोनिका खेल के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए एक निजी संस्थान में क्रिकेट प्रशिक्षक के रूप में सेवाएं दे रही हैं।


बाउंड्री पर छक्के-चौके लगाती बेटियां
सीकर में आयोजित डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल वूमन क्रिकेट लींग मैच में नेशनल की आठ टीमें भाग ले रहीं हैं। इन टीमों में कई खिलाडिय़ों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि वे केवल खेलने के उद्देश्य से इतनी दूर आई हैं। इनमें से कई खिलाड़ी रणजी के साथ नेशनल व ओपन टूर्नामेंट खेल चुकी हैं। हाथों में गल्ब्स और सिर पर हेट लगाए महिला खिलाड़ी अपना बेहतर प्रदर्शन दे रही हैं। खिलाडिय़ों ने यह भी बताया कि खेल में रूचि हैं, लेकिन उन्हें आगे बढऩे का बहुत कम मौके मिलते हैं। योग्य खिलाड़ी गरीबी के कारण पीछे छूट जाते हैं। वहीं पैसे वालों का रूझान महंगें खेलों की ओर बढ़ रहा हैं। महिला खिलाड़ी आज केवल खेलने के लिए हजारों किलोमीटर दूर पहुंच रहीं हैं।


करारी शिकस्त
जिला स्टेडियम में चल रहीं चार दिवसीय फस्र्ट डॉ. बी.आर. अंबेडकर मेमोरियल वूमेन्स क्रिकेट लीग प्रतियोगिता के दूसरे दिन खेले गए मुकाबलों में मध्य प्रदेश , हरियाणा चण्डीगढ़ और बिहार ने अपने अपने मुकाबले जीतकर प्रतियोगिता के अगले चरण में प्रवेश किया। पहला मुकाबला मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के बीच खेला गया।

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