Read also: आज से शुरू होंगे राष्ट्रीय संत तरुण सागर के कड़वे प्रवचन… सुख-दुख दोनों दूध के दांत कड़वे प्रवचनों में जैन मुनि ने बताया कि संत की वाणी के करिश्मे से आदमी अभाव की जिंदगी में भी खुश हो जाता है। याद रखना कि सुख हो या दुख दोनों ही दूध के दांत हैं। इनका टूटना यानी जाना तय है। सुख-दुख स्थाई नहीं होते। स्थाई तो आनंद है, जो साधनों से नहीं साधना से मिलता है। बहुत कुछ पाना है तो सब कुछ छोड़ो और सब कुछ पाना है तो सब कुछ छोड़ो। क्योंकि भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध दोनों ही राजपुत्र थे। पर सब पाने के लिए उन्होंने सक कुछ छोड़ दिया। इसलिए छोडऩा ही पाने का द्वार है। छूटेगा तो रागी कहलाओगे, छोड़ोगे तो वैरागी कहे जाओगे और खुद में लीन हो जाओगे तो वीतरागी बन जाओगे।