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जज्बे को सलाम : पहाड़ सी मुश्किलों को भी हराकर कमाल कर दिया सीकर के इन दिव्यांगों ने

locationराजसमंदPublished: Dec 02, 2016 12:44:00 pm

Submitted by:

vishwanath saini

सीकर के इन दिव्यांगों का चयन राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में हुआ है, जो दो से पांच दिसम्बर के बीच जयपुर एसएमएस स्टेडियम में आयोजित होगी।

जुनून व जीवन की कठिनाइयों से न हारने की जिद ने इन्हें जिंदगी का फलसफा सीखा दिया…। शारीरिक तौर पर दिव्यांग हैं पर हौसला एवरेस्ट से भी ऊंचा…। जिंदगी की धूप-छांव में न जाने कई ऐसे मौके आए, जब लगा कि संघर्ष की रेस में वे पीछे छूट जाएंगी, पर मजबूत इरादों ने उन्हें हौसला दिया…।
आज घूंघट की ओट में रहने वाली ये बहुएं खेल के मैदान में सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। संस्कारों का इल्म सहेजे इनकी सफलता परिवार व गांव का मान बढ़ा रही हैं। हाल ही में इनका चयन राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में हुआ है, जो दो से पांच दिसम्बर के बीच जयपुर एसएमएस स्टेडियम में आयोजित होगी।
व्हीलचेयर पर तैयारी
फतेहपुर गारिंडा की बहू शारदा देवी पोलियो ग्रसित हैं। दोनों पैर खराब होने के कारण खेल की तैयारी व्हीलचेयर पर करती हैं। इनका चयन गोला फेंक, तस्तरी फेंक और भाला फेंक में हुआ है। बतौर, शारदा का कहना है कि पति मजदूरी करते हैं और वह रसोई का काम निपटा कर खेल का अभ्यास करती हैं।
इनके पास 13 मेडल
कूदन की बहू सुमन ढाका एक पैर से विकलांग हैं। लेकिन, गोला फेंक और भाला फेंक में इनका कोई सानी नहीं है। विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा दिखाकर अब-तक 13 मेडल पर कब्जा जमा चुकी हैं। पति खेती कर रहे हैं और ये खेल मैदान पर मेडल बटोर रही हैं। सुबह-शाम अभ्यास की बदौलत इस बार भी उपलब्धि हासिल करने का दम भर रही हैं।
कदम छोटे पर सपने बड़े
बेरी भजनगढ़ के 24 वर्षीय शैतान सिंह का कद साढे़ तीन फीट है। वर्तमान में एसके अस्पताल में संविदा पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। इनका चयन भी दौड़ के लिए किया गया है। बतौर शैतान सिंह का कहना है कि उनका कद भले ही छोटा है लेकिन छोटे कदमों से लंबा सफर तय करना उन्हें आता है। इन्होंने दौड़ में कई मेडल जीते हैं। बतौर शैतान सिंह कहते हैं कि दौड़ उनका जीवन बन चुका है।
मुन्नी साधेगी लक्ष्य
बेरी की बहू मुन्नी देवी का दाहिना हाथ काम नहीं करता है। लेकिन, वह पिछले दो-तीन महीने से गोला फेंक और दौड़ की तैयारी में जुटी हुई हैं। खिलाड़ी मुन्नी का कहना है कि पति बेरोजगार हैं। लेकिन, वह खेल में नाम कमाकर अपना भविष्य बनाना चाहती हैं। ससुराल के लोग भी उनका पूरा सहयोग कर रहे हैं। मुन्नी देवी का कहना है कि शुरुआत में उनके लिए यह सब इतना आसान नहीं था। लेकिन परिजनों व ससुराल पक्ष के सहयोग से आज वे मेडल जितने का सपना देख रही हैं। शुरू में कई बार निराशा हुई लेकिन अब उम्मीद बढ़ी है। मेडल जीतकर गांव व परिजनों का नाम रोशन करना है। वहीं ग्रामीणों का भी कहना है कि गांव की बहू जरूर मान बढ़ाएगी।

13 साल उम्र, दौड़ 10 किमी की…
पंचमुखी बालाजी के पास रहने वाले साबरमल बांवरिया की उम्र महज 13 साल है। लेकिन, प्रतियोगिता में इनका चयन 10 किमी व 500 मीटर की दौड़ में हुआ है। इससे पहले भी ये कई मेडल अपने नाम कर चुके हैं। इस बार इन्हें पूरा भरोसा है कि कोई न कोई मेडल इन्हें जरूर मिलेगा।

हम भी नहीं है कम

पंचायत समिति में बाबू की नौकरी कर रहे भगवानराम को भले ही दृष्टि दोष हो लेकिन, गोला और भाला फेंक में इनकी नजर कभी नहीं चूकती। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए ये भी आतुर हैं।
आज होंगे रवाना
इनके कोच महेश नेहरा ने बताया कि जयपुर में प्रतियोगिता तीन दिन आयोजित होगी। इसके लिए सभी दिव्यांग खिलाड़ी शुक्रवार को सीकर से रवाना होकर जयपुर एसएमएस स्टेडियम पहुंचेंगे।

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