सुबह 7 बजे का समय है। वैद्य प्रहलाद राम और मोहनलाल कुर्सी पर बैठे हैं। अचानक सांवलोदा लाडखानी निवासी आयुर्वेदाचार्य बाल लाडखानी ‘आपा आजाद होगा……आपा आजाद होगाÓ कहते हुए लगभग दौड़ सी लगाते हुए अंदर पहुंचते हैं। जिसे सुनकर वैद्य प्रहलाद राम और मोहनलाल भी खुशी के मारे कुर्सी से उठ जाते हैं और एक दूसरे को गले लगाकर आजादी की मुबारकबाद देना शुरू कर देते हैं। यहीं से समाचार मौजूदा जाट बाजार होते हुए सीकर के कोने- कोने में आग की तरह फैल जाता है।
( हालांकि 14 अगस्त की रात ही ऑल इंडिया रेडियो पर देश की आजादी की घोषणा हो गई थी। लेकिन, देरी का समाचार और रेडियो सेट कम होने से इसकी जानकारी लोगों तक बहुत कम पहुंची थी)
समय 8.30 बजे..। एसके स्कूल व इंटर कॉलेज और सर माधव स्कूल समेत उस दौर की इने- गिने स्कूलों के बच्चे मैदान पर इक_ा होना शुरू होते हैं। सबमें आजादी का उत्साह है। एक के पीछे एक क्रम बनाते हुए सारे बच्चे भारत माता के बुलंद जयकारे लगाते हुए सुभाष चौक की ओर कदम बढ़ाते हैं। साथ में मौजूद शिक्षक और अन्य मौजिज लोगों की खुशी भी चेहरे पर साफ झलक रही है। कदम ताल करते हुए प्रभात फेरी कल्याण सर्किल, जाटिया बाजार और बावड़ी गेट होते हुए सुभाष चौक पहुंचती है।
समय: 9.30 बजे…। आजादी की सूचना मिलने के साथ यहां जश्न के लिए शहर के लोगों का जमावड़ा शुरू हो गया। सीकर रियासत के पचरंगे झंडे के साथ यहां पहली बार तिरंगा झंडा भी फहराने के लिए लगाया गया है। सभी एक दूसरे को हंसी- खुशी आजादी की बधाई दे रहे हैं। इसी बीच स्कूली बच्चों की एसके स्कूल से रवाना हुई प्रभात फेरी भी वहां पहुंच गई। सबको आजादी के प्रतीक तिरंगा फहरने का इंतजार है। इसी बीच यह सवाल उठ गया कि ध्वजा रोहण आखिर करेगा कौनï? तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष व स्वतंत्रता सेनानी मन्मथ कुमार मिश्र और लादूराम जोशी दोनों ने ध्वजा रोहण की इच्छा जाहिर की। लेकिन, बाद में दोनों के बीच राव राजा कल्याण सिंह से ही ध्वजारोहण की आम राय बनती है। लेकिन, इसी बीच पंच महाजनन में प्रमुख रहे मंजीत जोशी अचानक उठते हैं और ध्वज की डोरी यह कहकर खींच देते हैं कि ‘दरबार को परेशान क्यों किया जाएÓ…। इसी के साथ ध्वज को सलामी देने के साथ शुरू होता है लड्डू बांटकर खुशी जाहिर करने का दौर। जिसका आयोजन राव राजा कल्याण सिंह की ओर से किया जाता है। काफी देर तक जश्न के माहौल का मजा लूटकर लोग घर की ओर लौट जाते हैं।
(इतिहास की यह जानकारी इतिहासकार महावीर पुरोहित ने पत्रिका को दी है)