इसके अलावा खेतड़ी आने से पहले उनका नाम विविदिषानंद था, यह नाम राजा को उच्चारण में सही नहीं लगता था, बाद में खेतड़ी के राजा ने ही विवेकानंद नाम दिया था। उनके पांच नाम थे, जिनमें बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ, कमलेश, सच्चिदानंद, विविदिषानंद और विवेकानंद। सबसे ज्यादा चर्चित वे खेतड़ी से मिले विवेकानंद नाम से हुए। ऐतिहासिक विश्व धर्म सम्मेलन की याद में शिकागो में इसी सप्ताह तीन दिवसीय कार्यक्रम भी हुए हैं। वहीं मंगलवार को खेतड़ी में भी कई कार्यक्रम होंगे। इसकी तैयारियां चल रही है।
भारत माता जाग रही है…
विवेकानंद पर पीएचडी करने वाले झुंझुनूं जिले के भीमसर गांव के युवा लेखक डॉ जुल्फीकार के अनुसार स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो शहर के आर्ट इंस्टीट्यूट नामक भवन में सम्बोधन के शुरुआत में कहा था ‘अमेरिकावासियों बहनों तथा भाइयों भारतमाता जाग रही है। भारतवर्ष केवल अपने ही लिए नहीं जीता, अपितु सारी मानवजाति को आध्यात्मिक ज्ञान से पलावित करने का श्रेय भी उसे ही जाता है।’ अमेरिका में विवेकानंद की सफलता तथा उनकी उपलब्धियों का समाचार जब भारत में पहुंचा, तो सारा देश खुशी से झूम उठा था।
यदि राजा अजीत सिंह नहीं मिलते
-डॉ जुल्फीकार के अनुसार खेतड़ी व स्वामी विवेकानंद का रिश्ता गहरा रहा है। वे खेतड़ी का अपना दूसरा घर कहते थे।
-स्वामी विवेकानंद ने स्वयं कहा था भारतवर्ष की उन्नति के लिए जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत किया है वह मैं नहीं कर पाता यदि राजा अजीतसिंह मुझे नहीं मिलते।
-वे खेतड़ी में तीन बार आए। पहली बार 7 अगस्त 1891 से 27 अक्टूबर तक रुके। दूसरी बार 21 अप्रेल 1893 से 10 मई तक रुके और तीसरी बार 12 दिसम्बर 1897 से 21 दिसम्बर तक रुके।
-खेतड़ी राजा के कहने पर उनके सचिव जगमोहनलाल ने उनके लिए शिकागो यात्रा की माकूल व्यवस्था की थी। 31 मई 1893 को ओरियंट कम्पनी के पैनिनशुना नामक जहाज के प्रथम श्रेणी का टिकट खरीदकर दिया था।
-इसके बाद वे शिकागो रवाना हुए थे। स्वामी विवेकानंद और राजा अजीतङ्क्षसह की पहली मुलाकात सिरोही जिले के माउंट आबू में हुई थी।
नृत्यांगना को बोला मां
विवेकानंद जब पहली बार खेतड़ी आए तब राजा ने उनके मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में मैनाबाई नाम की एक नृत्यांगना ने जैसे ही नृत्य प्रस्तुत किया, स्वामी विवेकानंद उठकर जाने लगे। तब नृत्यांगना ने सूरदास का भजन गाया ‘हे प्रभूजी मेरे अवगुण चित्त ना धरो ’। जिसे सुनकर वे वहीं रुके और मैनाबाई को मां नाम से सम्बोधित किया।