श्याम कुंड में मिला था शीश
बाबा श्याम का शीश भक्तिकाल की एकादशी पर श्याम कुंड में मिला था। पहला मंदिर संवत 1084 में चौहान वंश की नर्मदा कंवर द्वारा बनवाया गया था था। गाये श्याम कुंड के पास गाय चराने ले जाते थे। जहां गाय अपने आप दूध देने लगती थी। ग्वालों के लिए जब यह कोतुहल का विषय बना तो उस जगह की खुदाई की गई। जहां बाबा श्याम का शीश निकला तो ग्वालों ने नर्मदा कंवर को सौंपा दिया था।
बाबा श्याम का शीश भक्तिकाल की एकादशी पर श्याम कुंड में मिला था। पहला मंदिर संवत 1084 में चौहान वंश की नर्मदा कंवर द्वारा बनवाया गया था था। गाये श्याम कुंड के पास गाय चराने ले जाते थे। जहां गाय अपने आप दूध देने लगती थी। ग्वालों के लिए जब यह कोतुहल का विषय बना तो उस जगह की खुदाई की गई। जहां बाबा श्याम का शीश निकला तो ग्वालों ने नर्मदा कंवर को सौंपा दिया था।
1977 ईस्वी में बना मंदिर
10 नवंबर 1720 में मंदिर की दूसरी जगह स्थापना की गई। यह दिन एकादशी व रविवार का था। रवि योग भी था। मंदिर की स्थापना से जुड़ा एक पट्टा भी है जिसमें मंदिर की स्थापना संवत 1777 में एकादशी के दिन हुई जाना लिखा है।
10 नवंबर 1720 में मंदिर की दूसरी जगह स्थापना की गई। यह दिन एकादशी व रविवार का था। रवि योग भी था। मंदिर की स्थापना से जुड़ा एक पट्टा भी है जिसमें मंदिर की स्थापना संवत 1777 में एकादशी के दिन हुई जाना लिखा है।
पहले साल में एक बार, अब हर महीने मेला
बाबा श्याम में भक्तों की आस्था दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। किसी जमाने में यहां पर केवल फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशमी को ही सैकड़ों श्याम भक्त आकर भजन कीर्तन करते थे। बाद में फाल्गुन का लक्खी मेला शुरू हुआ।
बाबा श्याम में भक्तों की आस्था दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। किसी जमाने में यहां पर केवल फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशमी को ही सैकड़ों श्याम भक्त आकर भजन कीर्तन करते थे। बाद में फाल्गुन का लक्खी मेला शुरू हुआ।
कबुतरिया चौक में भरता था मेला
श्री श्याम मंदिर कमेटी की स्थापना सन् 1986 में हुई। इसका विधान 1995 में बना। सन् दो हजार में मंदिर परिसर में भरने वाला मेला मुख्य बाजार (कबुतरिया चौक)में भरने लगा। मेले की बागडोर श्री श्याम मंदिर कमेटी ने संभाल ली और प्रशासन की देखरेख में ये मेले आयोजित होने लगे।
श्री श्याम मंदिर कमेटी की स्थापना सन् 1986 में हुई। इसका विधान 1995 में बना। सन् दो हजार में मंदिर परिसर में भरने वाला मेला मुख्य बाजार (कबुतरिया चौक)में भरने लगा। मेले की बागडोर श्री श्याम मंदिर कमेटी ने संभाल ली और प्रशासन की देखरेख में ये मेले आयोजित होने लगे।