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शेखावाटी के इन कलमवीरों ने हिंदी को दिलाई थी विश्व पटल पर पहचान

locationसीकरPublished: Sep 14, 2019 04:58:47 pm

Submitted by:

Vinod Chauhan

युगोस्लाविया में विश्व कविता समारोह में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले चूरू के मणि मधुकर और पत्रकारिता व साहित्य के जरिये हिंदी की सेवा कर पद्म भूषण सम्मान पाने वाले झुंझुनूं के पं. झाबरमल शर्मा ।

शेखावाटी के इन कलमवीरों ने हिंदी को दिलाई थी विश्व पटल पर पहचान

शेखावाटी के इन कलमवीरों ने हिंदी को दिलाई थी विश्व पटल पर पहचान

डॉ सचिन माथुर
सीकर. आज हिंदी यानी राष्ट्रभाषा दिवस है। राष्ट्रभाषा को महात्मा गांधी ने राष्ट्र की आवाज कहा था। उसी आवाज को अन्तरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने में शेखावाटी के साहित्यकारों की भी अहम भूमिका रही है। इनमें से युगोस्लाविया में विश्व कविता समारोह में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले चूरू के मणि मधुकर और पत्रकारिता व साहित्य के जरिये हिंदी की सेवा कर पद्म भूषण सम्मान पाने वाले झुंझुनूं के पं. झाबरमल शर्मा शामिल है। जो अपने हिंदी लेख, कविता- कहानियों, निबंध, उपन्यास और साहित्य के जरिये साहित्य जगत में अमिट हस्ताक्षर बन चुके हैं। हिंदी दिवस पर हम आपको ऐसे ही कुछ हिंदी सेवकों से रूबरू करवाते हैं, जिनके लेख इतिहास के पन्नों में अमर आलेख के रूप में लिपिबद्ध हैं।
साहित्य की भी सेवा
पत्रकारिता जगत के पुरोधा और पद्म भूषण पंडित झाबरमल शर्मा का वास्ता झुंझुनूं के खेतड़ी कस्बे के जसरापुर गांव से रहा। उनके हिंदी लेखनी में योगदान को देखते हुए उन्हें महाराणा कुंभा पुरस्कार, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति की पदवी, राजस्थान अकादमी का साहित्यकार सम्मान और साहित्य मनीषी की उपाधि से नवाजा गया।
देश के उपराष्ट्रपति से प्राप्त राजस्थान मंच का अभिनंदन ग्रंथ और १९८० में राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से पद्म भूषण अलंकरण सम्मान से उन्होंने शेखावाटी और साहित्य दोनों का गौरव बढ़ाया।
१८८८ में जन्मे पंडित झाबरमल ने कोलकाता से ज्ञानोदय, मारवाड़ी बंधु व कलकत्ता समाचार और मुंबई से भारत समाचार पत्र निकाला। १९११ में प्रयाग में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन में शामिल होने की अलावा उन्होंने गद्य में हिंदी गीता रहस्य सार, खेतड़ी नरेश और विवेकानंद सरीखी १४ और पद्य में तिलक गाथा और गांधी गुणानुवाद जैसी चार रचानाएं लिखी। कारावास की कहानी, गणेश शंकर विद्यार्थी, यूरोप का महायुद्ध और भारतीय दर्शन जैसे कई ख्यातनाम पत्रों का संपादन कर हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के मूल्यों को बुलंदियों तक पहुंचाया।
केरल विवि में पढ़ाई जाती है पुस्तकें
सीकर में हिंदी को मजबूती देने वाले साहित्यकारों में सबसे पहला नाम सुधाकर शास्त्री का आता है। इन्होंने कई रचनाएं लिखी। सांप्रदायिक सौहाद पर लिखी कविता ‘मैं करूं इबादत भगवान से, तू करे इबादत अल्लाह से‘ को आज भी याद किया जाता है। इनके अलावा कृपा राम बारहठ के राजिये के दोहे और सुंदरदास की रचनाएं भी इतिहास के पन्नों में अमर हो गई। सुमेर सिंह शेखावत सरीखे रचनाकारों ने भी साहित्य में सीकर का गौरव बढ़ाया है, जिनकी मरु मंगल आज भी केरल विश्वविद्यालय में शेखावाटी की संस्कृति से विद्यार्थियों का परिचय करवा रही है।
समारोह में बढ़ाया देश का मान
चूरू के राजगढ़ के सेउवा गांव निवासी मनीराम शर्मा ने साहित्य जगत में मणि मधुकर नाम से पहचान बनाई। उन्होंने चार उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, सात नाटक, एक एकाकी संग्रह, चार कविता संग्रह, सूखे सरोवर का भूगोल रिपोर्ताज, बाल उपन्यास सुपारी लाल और बाल काव्य अनारदाना और अकथ, कल्पना जैसी छह पत्रिकाओं का संपादन किया। प्रसिद्ध रचना पगफेरो के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। हिंदी की सेवा के लिए मणि मधुकर को प्रेमचंद और कालीदास पुस्कार से भी सम्मानित किया गया। विश्व कविता समारोह-८० में युगोस्लाविया में वे भारत के एकमात्र प्रतिनिधि कवि थे जिनका चयन भारत सांस्कृतिक सम्बद्ध परिषद के चयन मंडल ने किया था।
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