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इन जाबांजों ने आजाद हिंद फौज में रहकर अंग्रेजी हुकूमत से लिया था लोहा, आज भी गांव सुनाता है किस्से

locationसीकरPublished: Jan 24, 2020 12:13:23 pm

Submitted by:

Sachin

जब जय हिन्द और तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसे नारों से भारत के अनेक वीर योद्धाओं का खून खोल उठा और आजाद हिन्द फौज का हिस्सा बनकर सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोहा लेते हुए उनके छक्के छुड़े दिए थे।

सीकर. शेखावाटी इन जाबांजों ने आजाद हिंद फौज में रहकर अंग्रेजी हुकूमत से लिया था लोहा, आज भी गांव सुनाता है किस्से

सीकर. शेखावाटी इन जाबांजों ने आजाद हिंद फौज में रहकर अंग्रेजी हुकूमत से लिया था लोहा, आज भी गांव सुनाता है किस्से

प्रमोद स्वामी.
सीकर/खाटूश्यामजी.जब जय हिन्द और तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसे नारों से भारत के अनेक वीर योद्धाओं का खून खोल उठा और आजाद हिन्द फौज का हिस्सा बनकर सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोहा लेते हुए उनके छक्के छुड़े दिए थे। आजाद की इस लड़ाई में दांतारामगढ के पास बसे घाटवा गांव के नाथूराम गुर्जर, गुलाब सिंह शेखावत और सवाई सिंह जैसे स्वतंत्रता सैनानियों के किस्से हर किसी की जुबां पर है। उस समय तीनों वीर योद्धाओं ने सरकारी नौकरी और घर परिवार की परवाह किए बिना देश की आजादी के लिए नेताजी की फौज में शामिल हो गए थे। आज भी इन स्वतंत्रता सैनानियों के परिवार सेना में रहकर देश की सेवा कर रहे है। आज भी गांव में लोग युवा पीढी को इन तीनों सपूतों के किस्से लोग अक्सर सुनाया करते है।

नाथूराम ने जेल में घास की रोटी और खेजड़ी के छिलके का मसाला खाया

नाथूराम जी गुर्जर का जन्म एक साधारण परिवार में 1914 में किसान कानाराम के घर में हुआ। नाथूराम के मन में देश की भावना जागी और 18 अप्रैल 1941 को पंजाब रेजीमेंट सेंटर लाहौर में भारतीय सेना में भर्ती हुए जो अग्रेजो की थी। अंग्रेजो द्वारा भारतीय सेना के नौजवानों को गुलामों की तरह रखना और उनपर अत्याचार को देखकर नाथूराम ने इंडियन आर्मी को छोड़ दिया उसके बाद में उन्होंने 1942 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फोज में भर्ती हो गए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ नाथूराम ने रंगून ब्रह्मा में एक बड़ा हमला किया था। अंग्रेजो का खजाना लूट लिया और अंग्रेजी बैंक को लूटकर भारी मात्रा में गोला-बारूद को भी अपने कब्जे में ले लिया। लूटा हुआ सोना और अंग्रेजी हथियारों को रंगून और ब्रह्मा के समुंदर में फेंक दिया गया। हमले के बाद नाथूराम सहित कई सैनिक पकड़े भी गए। मगर नाथूराम ने नेताजी को अंग्रेजों द्वारा पकड़े जाने से बचा लिया। नाथूराम 1 साल जेल में रहे और उनपर देशद्रोह का मुकदमा भी चला। इस दौरान उन्होंने जेल में घास की रोटी के साथ खेजड़ी के छिलकों को पीसकर उसको मसाले के रूप में खाते थे। 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी व 1982 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उनको ताम्रपत्र भेंट करके सम्मानित किया।
गुलाब सिंह के जीवित होने का संदेशा मिलने पर झूम उठे थे परिजन


घाटवा के गुलाबसिंह शेखावत भी सुभाष चन्द्र बोस के आव्हान पर इण्डियन आर्मी जो अंग्रेजों की थी उसे छोड़ कर आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गए थे। गुलाब सिंह को भी भारत सरकार द्वारा ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया था । आजादी के बाद वे गुजरात पुलिस में भर्ती होकर वही रहने लगे। इसके बाद 1985-86 में पुन: घाटवा आ गए थे । राज्य सरकार से मिलने वाली स्वतंत्रता सैनानी पेंशन को सरकार ने इन्हें यह कह कर अस्वीकार कर दिया था कि इन्होंने आवेदन की तारीख से 10 वर्ष निकल जाने के बाद आवेदनपत्र भेजा है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर से घीसालाल कामदार ने निवेदन कर राज्य सरकार की सम्मान पेंशन करवाई थी। इतिहासकार बताते है कि जब गुलाब सिंह 22 वर्ष के थे तो उनके पिता ने इंडियन आर्मी में भर्ती होने से पहले उनकी सगाई कर दी। लेकिन 1942 में आजाद हिंद फौज में भर्ती होने के बाद 5 वर्ष तक उनके कोई समाचार घर पर नहीं मिले तो परिजनों ने उनको मरा हुआ समझ लिया। हालांकि देश आजाद होने पर भारत सरकार द्वारा गुलाब सिंह के जीवित होने का संदेश मिला तो परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
जब सवाई सिंह को छू कर निकल गई थी मौत

सेनानी सवाई सिंह शेखावत 1938 में इंडियन आर्मी में भर्ती हुए। उस वक्त उनकी शादी भी हो गई थी। सन 1942 में आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर इरान, इराक और अफगानिस्तान में नेताजी बोस के साथ लड़ाई में भाग लिया। स्वाधीनता की लड़ाई के दौरान अफगानिस्तान में लोग उस जगह को छोड़कर भागने लगे। इसी जगह पर नेताजी सहित सवाई सिंह व कई सैनिक लोगों के कीमती सामान की सुरक्षा कर रहे थे। लेकिन अंग्रेजों ने नेताजी बोस पर हमला कर दिया। इस हमले में सवाई सिंह गोली लगने से बच गए। एक गोली सवाई सिंह की टोपी को छूकर निकल गई लेकिन अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने नेताजी के साथ अंग्रेजों से लड़ते रहे। इसी दौरान अंग्रेजों ने सवाई सिंह को पकड़ लिया और जेल में डाल कर भयंकर यातनाएं दी। सन 1946 में जब देश आजाद हो रहा था उस समय सवाई सिंह का भाई देवी सिंह जी फौज में भर्ती था देवी सिंह को गंभीर घायल हालत में एक अस्पताल में सवाई सिंह मिला। देश आजाद होने के बाद सवाई सिंह को भी भारत सरकार ने कई मेडल देकर सम्मानित किया। लाल किले पर लगाई गई स्वतंत्रता सैनानियों की सूची में सवाई सिंह का नाम आज भी सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है।
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