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तमिलनाडू से आए तो एंबुलेंस चालक ने क्यों मांगे एक हजार रुपए, कई रातें भूखें ही गुजारी

locationसीकरPublished: May 28, 2020 10:20:03 pm

Submitted by:

Vikram

सीकर. शेखावाटी के सैंकडों लोगों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन सीकर लेकर आई। गांव लौटने पर लोगों ने सुकून की सांस ली। दो महीने पहले सोलर का काम करने गए युवक तमिलनाडू में ही फंस गए। अब वे श्रमिक स्पेशल ट्रेन से सीकर लौट कर आए है।

सैंकडों लोगों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन सीकर लेकर आई

सैंकडों लोगों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन सीकर लेकर आई

सीकर. शेखावाटी के सैंकडों लोगों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन सीकर लेकर आई। गांव लौटने पर लोगों ने सुकून की सांस ली। दो महीने पहले सोलर का काम करने गए युवक तमिलनाडू में ही फंस गए। अब वे श्रमिक स्पेशल ट्रेन से सीकर लौट कर आए है। यहां भी शहर से सांवलोदा लाडखानी जाने के लिए साधन नहीं मिला। एक एंबुलेंस चालक ने गांव तक छोडऩे के लिए एक हजार रुपए मांगे। बाद में पांच सौ रुपए में गांव लेकर गया। सांवलोदा लाडखानी निवासी कंवरपाल सिंह ने बताया कि उन्हें खाने के लिए आटा तक नहीं मिलता था। कई रातें भूखे ही गुजारनी पड़ी थी। उन्होंने बताया कि गांव से वे १७ फरवरी को हरीप्रसाद, रामकुमार व सुरेश के साथ सोलर का काम करने के लिए आसाम गए थे। काफी बरसात होने के कारण पांच दिनों तक काम शुरू नहीं हो सका। तब वे ६ मार्च को तमिलनाडू के अरिलूर में गए। वहां पर अल्ट्राटेक सीमेंट के प्लांट में सौर ऊर्जा के लिए काम शुरू करना था। वहां पर मौसी का लड़का कुंदन पहले से ही रहता था। वे उसी के साथ ही रहने लग गए। सोलर प्लांट का काम तो शुरू हो गया। २२ मार्च को लॉकडाउन लग गया और उनका काम बंद हो गया। वापस आने के लिए उन्हें बस व ट्रेन नहीं मिल सकी।

70 से 80 रुपए किलो आटा मिलता था
कंवरपाल सिंह ने बताया कि रोजाना उनके सात सौ रुपए खाने पर खर्च होते थे। उनके पास जमा पूंजी खत्म हो गई थी। वे पांच लोग एक ही कमरे में रहते थे। दोस्तों और रिश्तेदारों से दो हजार तो कभी पांच हजार रुपए खाते में उधार डलवाते थे। वहां पर उन्हें खाने के लिए 70 से 80 रुपए किलो में आटा खरीदना पड़ता था। वहां पर एक ही एटीएम था। उसमें कई बार रुपए नहीं मिलते थे। कई बार मजबूरी में भूखा ही रहना पड़ता था। तो कभी केवल चावल ही खाने पड़ते थे। अन्य घरेलू सामान भी काफी मंहगे दामों में मिलता था। कई बार राजस्थान आने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया पर कोई फायदा नहीं मिला।

दो महीने में केवल दस किलो चावल मिले
कंवरपाल सिंह ने बताया कि उन्हें दो महीने में एक बार एक व्यक्ति दस किलो चावल, आधा किलो तेल व आधा किलो दाल देकर गया था। कोई दोबारा नहीं आया। उन्होंने पास के पुलिस थाने में पुलिसकर्मियों को राजस्थान जाने की बात कहीं तो उन्होंने व्यवस्था होने पर ही भेजने की बात कहीं। तीन दिन पहले उनके पास बीएलओ आए और तिरूची से राजस्थान ट्रेन जाने की बात कहीं। तब वे टेंपू से किराए पर लेकर गए। फिर बस से तिरूची पहुंचे। तीन दिनों में वे जयपुर पहुंचे। ट्रेन में उन्हें खाने के लिए चाय-बिस्किट व खाना मिलता था।
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