रोजेदार महिलाएं बोली, बदलाव का अहसास देता है सुकून, देखें क्या है मामला
सीकरPublished: May 20, 2019 04:50:14 pm
रोजों ने बदली महिलाओं की दिनचर्या, तडक़े से शुरू हो जाता है इनका दिन
रोजेदार महिलाएं बोली, बदलाव का अहसास देता है सुकून, देखें क्या है मामला
सीकर. रमजान उल मुबारक का महीना…नेकियों और इबादत का दौर… और इन सबके साथ ही रोजेदारों की जिंदगी जुदा। घर-परिवार की धुरी महिलाओं का भी रोजों से सब कुछ बदल गया है। उसकी दिनचर्या से लेकर कामकाज का अंदाज तक बदला हुआ है। बतौर मां, बहू, बहन और बेटी, रोजों का सबसे ज्यादा बदलाव उन पर आया है। रमजान के महीने में महिलाओं की बदली हुई जिंदगी जानने की कोशिश की पत्रिका टीम ने।
पेश है एक रिपोर्ट…
ऐसे आया बदलाव
रमजान के महीने में रोजे तो पूरा घर रखता है लेकिन उनके लिए रोजे रखवाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है। सुबह जल्दी उठकर सेहरी के लिए भोजन तैयार करना। इसके लिए रात को दो ढाई बजे उठना होता है। सेहरी तैयार करके सबको खिलाने के बाद खुद भी रोजा रखती हैं। इसी तरह उनका दिन भी शाम को जल्दी शुरू हो जाता है। पहले पूरे घर के लिए रोजा इफ्तार की तैयारियां करनी होती है। रोजा खोलने के वक्त आम भोजन के साथ कुछ हल्का फुल्का स्नेक्स आदि भी तैयार करने होते हैं। इसमें दो ढाई घंटे लगते हैं। इफ्तार के बाद रात के खाने के लिए देर रात तक काम करना पड़ता है। इन सबके बीच खुद की इबादत के लिए भी समय निकालना पड़ता है।
क्या कहती हैं महिलाएं
रमजान के महीने में सुबह जल्दी उठने से लेकर रात को देर तक काम करना होता है, क्योंकि हम पर पूरे घर की जिम्मेदारी होती है। इसके लिए पूरी तरह शरीर और मन दोनों को तैयार करना होता है। इससे जिम्मेदारी के अहसास के साथ सबको मिलने वाली खुशी मिलकर बदलाव को अनूठा
बना देती है।
शाहीन बानो देवड़ा, वार्ड नं. 35 सीकर
रोजों में आम दिनों से ज्यादा काम करना होता है। इसके लिए शरीर के साथ मन से भी तैयार करना होता है। हालांकि शुरू में थोड़ी दिक्कत होती है, लेकिन बाद में सब सामान्य हो जाता है। यह तो रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा है। इससे बहुत सुकून मिलता है।
शकीला बानो चौहान, गृहिणी, मोहल्ला मस्तान शाह सीकर
रोजों का मतलब इबादत होता है, और किसी की खिदमत (सेवा) भी इबादत मानी जाती है, चाहे वो घर वालों की हो या किसी पड़ोसी की। इससे रोजों का सवाब बढ जाता है। दिनचर्या में आया ये बदलाव खुशी का अहसास
देता है।
जाहिदा बानो, गृहिणी, वार्ड नं
35, सीकर
घर और नौकरी दोनों जिम्मेदारी को निभाना अच्छा लगता है। रमजान का महीना बरकतों और नेकियों का महीना है। इस महीने में इबादत के साथ खिदमत का मौका भी ज्यादा मिलता है। इसलिए इस बदलाव का अहसास मन को राहत देता है। इसे रुटीन समझकर काम करते हैं, तो कोई परेशानी नहीं होती है।
डॉ शाहीना रंगरेज, यूनानी चिकित्सक सीकर
रमजान के महीने में दिनचर्या में आने वाला बदलाव अपने आप में अनूठा है, वैसे तो आमदिनों में जल्दी उठना ही होता है, लेकिन रमजान में डेढ दो घंटे पहले उठकर पूरे घर का खाना तैयार करना होता है। इससे काम तो बढ़ता है लेकिन इससे मिलने वाली खुशी के आगे परेशानी का अहसास नहीं होता।
अंजुम कुरेशी, गृहिणी मोहल्ला रोशनगंज सीकर
इन दिनों काम आम दिनों से ज्यादा होता है, इससे व्यस्तता तो बढ़ जाती है, लेकिन सबको खिलाकर खाने और इससे मिलने वाले सवाब (पुण्य) से इसकी खुशी कई गुणा बढ़ जाती है। इस बदलाव को जिन्दगी का अहम हिस्सा को मान कर काम करते हैं।
रुमाना बानो, मक्का मस्जिद के पास सीकर