हवा में जहर के कारण गर्भवती महिलाओं और गर्भ में शिशुओं के प्रभावित होने संबंधित समस्याएं बढ़ती जा रही है। पर्यावरण को लेकर सरकार की तमाम कोशिश नाकाम साबित हो रही है। कहीं से भी प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा। दिनों दिन बढ़ता प्रदूषण लोगों के जीवन के लिए खतरा तो है ही, लेकिन कोख में पल रहे भू्रण भी इससे असुरक्षित हंै।
स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्टकी माने तो जनवरी से लेकर अगस्त महीने तक ६४ से अधिक नवजातों का कोख में दम घुट गया है। यह वह आंकड़ा है, जो सरकारी रिकॉर्ड में है। माना जा रहा है कि यह आंकड़ा सौ के पार है। जिले के दूर-दराज अंचल में हुई गर्भस्थ शिशुओं की मृत्यु की जानकारी महकमे तक नहीं पहुंच पाती है।
जानिए, प्रदूषण कैसे कर रहा है प्रभावित
डॉ. यूके सिंह ने बताया कि प्रदूषित वायु व जल में हानिकारक कण होते हैं जो मां के खून से बच्चे में भी पहुंच जाते हैं। ऐसे वक्त में बच्चे में पोषक तत्वों की सप्लाई कम हो जाती है। इससे प्री-मेच्योर, लो बर्थ वेट, प्रसव के दौरान सांस में दिक्कतें बढ़ जाती हैं। यहां तक कि प्रदूषण के चलते कैंसर भी हो जाता है। ऐसे परिस्थितियों में बच्चे की गर्भ में मौत हो जाती है। क्योंकि बच्चे को ऑक्सीजन या फिर पोषक तत्व मां से ही मिलते है।
डॉ. यूके सिंह ने बताया कि प्रदूषित वायु व जल में हानिकारक कण होते हैं जो मां के खून से बच्चे में भी पहुंच जाते हैं। ऐसे वक्त में बच्चे में पोषक तत्वों की सप्लाई कम हो जाती है। इससे प्री-मेच्योर, लो बर्थ वेट, प्रसव के दौरान सांस में दिक्कतें बढ़ जाती हैं। यहां तक कि प्रदूषण के चलते कैंसर भी हो जाता है। ऐसे परिस्थितियों में बच्चे की गर्भ में मौत हो जाती है। क्योंकि बच्चे को ऑक्सीजन या फिर पोषक तत्व मां से ही मिलते है।
इसमें भी बना रहता है खतरा
– मां का ब्लड प्रेशर बढऩे पर।
– गर्भ में बच्चे का पूरी तरह से विकास नहीं होने पर।
– गर्भनाल (नाड़ा) में इंफेक्शन होने पर।
– बच्चे को गर्भ में की चोट लगने पर।
– मां को डायबीटिज होने पर।
– मां का ब्लड प्रेशर बढऩे पर।
– गर्भ में बच्चे का पूरी तरह से विकास नहीं होने पर।
– गर्भनाल (नाड़ा) में इंफेक्शन होने पर।
– बच्चे को गर्भ में की चोट लगने पर।
– मां को डायबीटिज होने पर।