ऐसी समितियों के संचालकों या शासन स्तर से इनकी खराब माली हालत सुधारने के लिए किसी के पास कोई योजना तक नहीं है। बताया गया कि जिले में पंजीकृत कुछ कृषि साख सहकारी संस्थाएं छोटे स्तर पर व सीमित क्षेत्र में व्यवसाय कर रही है। हालांकि काफी समितियां पूर्व में घाटे या अन्य कारण से निष्क्रिय भी हो गई। वर्तमान में सहकारिता नियमों के तहत पंजीकृत जिले में 39 प्राथमिक कृषि साख समितियां सक्रिय तौर पर कार्यरत हैं।
यह सहकारिता के अंतर्गत ही गल्ला दुकान का संचालन सहित कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियों का संचालन कर रही हैं। सामने आया कि इनमें से अधिकतर साख समितियां अपने बजट के मामले में कंगाल हैं। इस कारण यह समितियां हर माह शासकीय गोदाम से गल्ले का अनाज समय पर उठाने में पिछड़ रही हैं। महत्वपूर्ण बात है कि गांव में अपने सदस्य किसानों को फसल के सीजन में जरूरत के दौरान समय पर रासायनिक खाद उपलब्ध कराने जैसा अहम काम भी इन समितियों के जिम्मे है।
इसके तहत ही फसली सीजन में अनुमानित मांग के अनुसार अपने पास खाद का भंडारण करने का काम इन समितियों को ही करना होता है। बताया गया कि अपने पास खाद का भंडारण करने के लिए इन समितियों को काफी बड़ी राशि की जरूरत होती है मगर खाद उठाने के लिए दाम किसी समिति के पास नहीं मिलता। इस कारण अधिकतर समिति शासकीय व्यवस्था के अनुसार पहले दाम चुका कर खाद का भंडारण करने में टालमटोल वाला रवैया अपनाती हैं।
इसके चलते ही गांवों में बहुत बार किसान को वहां कार्यरत समिति से समय पर खाद मिलने में देरी के हालात बनते हैं और किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिले की कोयलखूंथ, झारा, गलीहरा, सखहुआं सहित सहित लगभग 15 समितियां ऐसी ही दयनीय आर्थिक हालत में बताई गई हैं। हालांकि अन्य की स्थिति कोई अधिक बेहतर नहीं है मगर लगभग आधी समितियां बेहद गरीबी में होना पाया गया है।
बताया गया कि बजट नहीं होने के कारण मार्कफैड व सहकारिता विभाग के स्थानीय अधिकारियों को कई समितियों को उधार पर खाद या बीज देना पड़ता है। हालांकि नियमानुसार भुगतान के बाद ही समितियों को सामग्री दिए जाने का नियम है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि जिले में कार्यरत कृषि साख समितियां अपनी गतिविधि संचालन की हालत में नहीं हैं। मगर अपने या शासन किसी स्तर पर इस खराब माली हालत को बदलने पर कोई नहीं सोच रहा।