महिला डॉक्टर पदस्थ नहीं होने के कारण प्रसूताओं को सही उपचार नहीं मिल पाता है। इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बीमारी की जांच के लिए मशीनें भी उपलब्ध नहीं हैं। जिले के प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केेंन्द्रों में सुविधाओं में कोई इजाफा नहीं होने से सौगात कागजी साबित हो रही है। इमरजेंसी से लेकर ओपीडी के संचालन तक का जिम्मा नर्सों पर है। पैरामेडिकल स्टाफ की भी कमी बनी हुई है। ऐसे में अस्पताल भवन पर प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लिखकर स्वास्थ्य विभाग संसाधनों के नाम पर मोटा बजट खर्च कर रहा है लेकिन इसकी तुलना में मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही है।
इसलिए झोलाछाप से कराते हैं इलाज
मरीज के परिजनों ने बताया है कि जब ग्रामीण अंचल में संचालित स्वास्थ्य केंन्द्रों में बेहतर इलाज मुहैया नहीं होता है तब मजबूरी में मरीज स्थानीय झोलाछाप चिकित्सकों से इलाज कराते हैं। यदि स्वास्थ्य केन्द्रों में समय पर इलाज मुहैया हो जाता तो झोलाछाप से इलाज नहीं कराते। यही वजह है कि झोलाछाप चिकित्सक भी मरीजों को लूटते हैं। स्थिति गंभीर होने पर झोलाछाप डॉक्टर भी रेफर कर देते हैं। इससे मरीजों की जान पर बन आती है।
पोषण पुनर्वास भी चिकित्सक विहीन
जिले के देवसर, सरई, चितरंगी के स्वास्थ्य केन्द्रों में पोषण पुनर्वास केंद्र भी संचालित हो रहा है। यहां भर्ती बच्चों के स्वास्थ परीक्षण के लिए शिशु रोग विशेषज्ञ जरूरी हैं लेकिन यहां शिशु रोग विशेषज्ञ शुरू से नहीं हैं। जबकि शिशु रोग विशेषज्ञ की देखरेख में पोषण पुनर्वास केंद्र चलना चाहिए।
अस्पताल में स्टाफ का अभाव
स्वास्थ्य केंद्र के लिए निर्धारित चिकित्सक और स्टाफ की तुलना में यहां स्टाफ की कमीं है। स्वास्थ्य केन्द्रों में दो चिकित्सा अधिकारी, स्त्री रोग विशेषज्ञ, शिशुरोग विशेषज्ञ सहित चिकित्सा विशेषज्ञ जरूरी है। इसके साथ ही 22 पैरामेडिकल व अन्य स्टॉफ की आवश्यकता है जबकि वर्तमान में मात्र एक चिकित्सक व नर्सों के भरोसे 30 बिस्तर क्षमता के अस्पताल का संचालन कर रहे हैं।
इसलिए झोलाछाप से कराते हैं इलाज
मरीज के परिजनों ने बताया है कि जब ग्रामीण अंचल में संचालित स्वास्थ्य केंन्द्रों में बेहतर इलाज मुहैया नहीं होता है तब मजबूरी में मरीज स्थानीय झोलाछाप चिकित्सकों से इलाज कराते हैं। यदि स्वास्थ्य केन्द्रों में समय पर इलाज मुहैया हो जाता तो झोलाछाप से इलाज नहीं कराते। यही वजह है कि झोलाछाप चिकित्सक भी मरीजों को लूटते हैं। स्थिति गंभीर होने पर झोलाछाप डॉक्टर भी रेफर कर देते हैं। इससे मरीजों की जान पर बन आती है।
पोषण पुनर्वास भी चिकित्सक विहीन
जिले के देवसर, सरई, चितरंगी के स्वास्थ्य केन्द्रों में पोषण पुनर्वास केंद्र भी संचालित हो रहा है। यहां भर्ती बच्चों के स्वास्थ परीक्षण के लिए शिशु रोग विशेषज्ञ जरूरी हैं लेकिन यहां शिशु रोग विशेषज्ञ शुरू से नहीं हैं। जबकि शिशु रोग विशेषज्ञ की देखरेख में पोषण पुनर्वास केंद्र चलना चाहिए।
अस्पताल में स्टाफ का अभाव
स्वास्थ्य केंद्र के लिए निर्धारित चिकित्सक और स्टाफ की तुलना में यहां स्टाफ की कमीं है। स्वास्थ्य केन्द्रों में दो चिकित्सा अधिकारी, स्त्री रोग विशेषज्ञ, शिशुरोग विशेषज्ञ सहित चिकित्सा विशेषज्ञ जरूरी है। इसके साथ ही 22 पैरामेडिकल व अन्य स्टॉफ की आवश्यकता है जबकि वर्तमान में मात्र एक चिकित्सक व नर्सों के भरोसे 30 बिस्तर क्षमता के अस्पताल का संचालन कर रहे हैं।