इसके चलते पर्यावरण मंजूरी को हरी झंडी का मामला प्रथम स्तर पर ही उलझ गया है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी कांति चौधरी के अनुसार 30 अगस्त को जन सुनवाई व इससे पहले एपीएमडीसी कंपनी को कोल खनन अनुमति के खिलाफ 40 लोगों की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई। मगर इनमें से पर्यावरण से जुड़ी आपत्तियों की संख्या वे नहीं बता पाए। उनकी ओर से केवल इतना कहा गया है कि आपत्तियों के संबंध में कंपनी का स्पष्टीकरण लेकर व आपत्ति निपटारे की राय लेकर प्रकरण कलेक्टर को भेजा जाएगा।
इसके बाद प्रक्रिया के अनुसार पत्रावली पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जिला कलेक्टर की ओर से केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजी जाएगी। हालांकि बताया गया कि पर्यावरणीय जन सुनवाई में परियोजना को लेकर मिली अधिकतर आपत्तियां भू अर्जन की प्रक्रिया, विस्थापितों को राहत व सही मुआवजा को लेकर दर्ज कराई गई हैं। इनमें से अधिकतर में परियोजना से विस्थापित होने वालों का सही सर्वे नहीं होने व पूरा मुुआवजा नहीं मिलने पर केन्द्रित हैं जबकि ये विषय राजस्व विभाग से जुड़े हैं।
मगर सही सर्वे नहीं होने व इससे जुड़े अन्य विषय पर्यावरणीय जन सुनवाई पर भारी पड़ रहे हैं। इसके चलते परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी का मामला अब उलझता दिखाई दे रहा है। इस परियोजना के लिए एपीएमडीसी कंपनी के लिए सुलियारी व इसके आसपास के कई गांवों की भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। इसी परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी के लिए ३० अगस्त को जन सुनवाई की गई। इस दिन मौके पर विधायक सुभाष वर्मा व ग्रामीणों की ओर से भू अर्जन के विरोध में प्रदर्शन किया गया। ग्रामीण इसके बाद भी लगातार परियोजना के विरोध में डटे हैं।
निशाने पर आए प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी
इस पूरे मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का स्थानीय अमला पूरी तरह नाकाम दिखता है। स्थानीय क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी व उनके कार्मिक ग्रामीणों को पर्यावरणीय जन सुनवाई के संबंध मेें समझा ही नहीं पाए। असल में कोल खनन के लिए भू अर्जन व पर्यावरणीय जन सुनवाई अलग प्रक्रिया है। जन सुनवाई का भू अर्जन या पुनर्वास से संबंध ही नहीं। अपनी इसी नाकामी के चलते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अमला अब ग्रामीणों के निशाने पर आ गया।
इस पूरे मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का स्थानीय अमला पूरी तरह नाकाम दिखता है। स्थानीय क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी व उनके कार्मिक ग्रामीणों को पर्यावरणीय जन सुनवाई के संबंध मेें समझा ही नहीं पाए। असल में कोल खनन के लिए भू अर्जन व पर्यावरणीय जन सुनवाई अलग प्रक्रिया है। जन सुनवाई का भू अर्जन या पुनर्वास से संबंध ही नहीं। अपनी इसी नाकामी के चलते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अमला अब ग्रामीणों के निशाने पर आ गया।