उपभोक्ता परेशान
बीएसएनएल में व्याप्त अव्यवस्थाओं से उपभोक्ताओं की समस्या का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। उपभोक्ताओं की सेवा में किसी भी तरह की समस्या के समाधान के लिए बीएसएनएल के पास न तो कोई कर्मचारी है और न ही कोई ठेकेदार, जिसके जरिए कनेक्शन में फाल्ट जैसी अन्य दूसरी समस्या का समाधान कराया जा सके। दरअसल बीएसएनएल के जिले में आधे से अधिक एक्सचेंज पर एक भी लाइन स्टॉफ नहीं है। नई व्यवस्था के तहत ठेके के जरिए काम कराने की व्यवस्था है, लेकिन पिछले छह महीने से टेंडर नहीं होने के चलते वर्तमान में कोई ठेकेदार भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में उपभोक्ताओं की सुविधा व समस्या पूरी तरह से रामभरोसे है। इन अव्यवस्थाओं का ही नतीजा है कि जहां पांच वर्ष पहले तक बीएसएनएल के टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या पांच हजार के करीब थी, वहीं अब केवल ढाई हजार उपभोक्ता बचे हैं। अधिकारियों के मुताबिक ऐसा कोई महीना नहीं होता, जिसमें उपभोक्ताओं की ओर से टेलीफोन सेवा बंद करने का आवेदन न आए। टेलीफोन कनेक्शन कटवाने के लिए हर महीने आवेदन आ रहे हैं।
पूर्व के ठेकेदार ने खड़े किए हाथ
उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करने के लिए पूर्व में तय ठेकेदार ने काम करने से हाथ खड़ा कर दिया है। दरअसल ठेके की समय सीमा छह महीने पहले जून में समाप्त हो गई है। इसके बाद बीएसएनएल की ओर से न ही ठेकेदार की अवधि बढ़ाई गई और न ही निविदा के जरिए किसी नए ठेकेदार को जिम्मेदारी दी गई। अभी तक पूर्व में कार्य करने वाला ठेकेदार इस उम्मीद में कार्य कर रहा था कि जल्द ही नई प्रक्रिया शुरू होगी, लेकिन अब उसने भी हाथ खड़ा कर दिया है।
लाखों रुपए की लग चुकी है चपत
जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के चलते एक ओर जहां उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करने की व्यवस्था पूरी तरह से बेपटरी हो गई है। वहीं दूसरी ओर बीएसएनएल को सरकार व गैर सरकारी निर्माण एजेंसियों की ओर लाखों रुपए का चपत भी लगाया जा चुका है। संचार कंपनियों के अलावा नगर निगम, पीडब्ल्यूडी, हाउसिंग बोर्ड व हाइवे का कार्य करने वाली निर्माण एजेंसियां बीएसएनएल की केबिल को क्षतिग्रस्त कर लाखों रुपए की चपत लगा चुकी हैं, लेकिन क्षतिपूर्ति वसूल कर पाना निगम अधिकारियों के लिए मुमकिन नहीं हो पा रहा है।
बीएसएनएल में व्याप्त अव्यवस्थाओं से उपभोक्ताओं की समस्या का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। उपभोक्ताओं की सेवा में किसी भी तरह की समस्या के समाधान के लिए बीएसएनएल के पास न तो कोई कर्मचारी है और न ही कोई ठेकेदार, जिसके जरिए कनेक्शन में फाल्ट जैसी अन्य दूसरी समस्या का समाधान कराया जा सके। दरअसल बीएसएनएल के जिले में आधे से अधिक एक्सचेंज पर एक भी लाइन स्टॉफ नहीं है। नई व्यवस्था के तहत ठेके के जरिए काम कराने की व्यवस्था है, लेकिन पिछले छह महीने से टेंडर नहीं होने के चलते वर्तमान में कोई ठेकेदार भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में उपभोक्ताओं की सुविधा व समस्या पूरी तरह से रामभरोसे है। इन अव्यवस्थाओं का ही नतीजा है कि जहां पांच वर्ष पहले तक बीएसएनएल के टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या पांच हजार के करीब थी, वहीं अब केवल ढाई हजार उपभोक्ता बचे हैं। अधिकारियों के मुताबिक ऐसा कोई महीना नहीं होता, जिसमें उपभोक्ताओं की ओर से टेलीफोन सेवा बंद करने का आवेदन न आए। टेलीफोन कनेक्शन कटवाने के लिए हर महीने आवेदन आ रहे हैं।
पूर्व के ठेकेदार ने खड़े किए हाथ
उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करने के लिए पूर्व में तय ठेकेदार ने काम करने से हाथ खड़ा कर दिया है। दरअसल ठेके की समय सीमा छह महीने पहले जून में समाप्त हो गई है। इसके बाद बीएसएनएल की ओर से न ही ठेकेदार की अवधि बढ़ाई गई और न ही निविदा के जरिए किसी नए ठेकेदार को जिम्मेदारी दी गई। अभी तक पूर्व में कार्य करने वाला ठेकेदार इस उम्मीद में कार्य कर रहा था कि जल्द ही नई प्रक्रिया शुरू होगी, लेकिन अब उसने भी हाथ खड़ा कर दिया है।
लाखों रुपए की लग चुकी है चपत
जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के चलते एक ओर जहां उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करने की व्यवस्था पूरी तरह से बेपटरी हो गई है। वहीं दूसरी ओर बीएसएनएल को सरकार व गैर सरकारी निर्माण एजेंसियों की ओर लाखों रुपए का चपत भी लगाया जा चुका है। संचार कंपनियों के अलावा नगर निगम, पीडब्ल्यूडी, हाउसिंग बोर्ड व हाइवे का कार्य करने वाली निर्माण एजेंसियां बीएसएनएल की केबिल को क्षतिग्रस्त कर लाखों रुपए की चपत लगा चुकी हैं, लेकिन क्षतिपूर्ति वसूल कर पाना निगम अधिकारियों के लिए मुमकिन नहीं हो पा रहा है।