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सिंगरौली से क्यों गायब हो गए पर्यावरण मित्र, जानने के लिए पढ़ें

locationसिंगरौलीPublished: Jan 15, 2019 01:05:23 am

Submitted by:

Anil kumar

शून्य रही जिले में गिद्धों की गिनती
सिंगरौली से क्यों गायब हो गए पर्यावरण मित्र, जानने के लिए पढ़ें

Counting Vultures in the District

Counting Vultures in the District

सिंगरौली. चिंताजनक स्तर तक पहुंच गए प्रदूषण से जूझते इस जिले से प्राकृतिक तौर पर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मा संभालने वाले पक्षी गिद्ध तक ने दूरी बनाई हुई है। इसे प्राकृतिक तौर पर गंदगी साफ कर वातावरण स्वच्छ बनाने वाला निस्वार्थ सेवादार माना जाता है। दुर्भाग्य है कि सिंगरौली जैसे प्रदूषण के शिकार जिले के लोगों को इस निस्वार्थ सेवादार का दर्शन तक दुर्लभ है। इसलिए जिले के बिगड़े पर्यावरण को सुधारने में इस पक्षी की सेवा का लाभ नहीं मिलता। वन विभाग का अधिकृत तौर पर मानना है कि जिले में पर्यावरण मित्र गिद्धों का कोई स्थाई बसेरा नहीं है व ना ही वातावरण की सफाई करने ये पक्षी मेहमान के तौर पर इस जिले में प्रवास करने आते हैं। इस प्रकार जिले मेें गिद्ध पक्षी का आंकड़ा शून्य पर ठहरा है।
12 जनवरी को हुई गणना
वन विभाग की ओर से दो दिन पहले शनिवार १२ जनवरी को सभी जगह लुप्त हो रहे इस पक्षी की गणना कराई गई मगर इसे लेकर सिंगरौली जिले को निराश होना पड़ा। इस दिन जिले मेंं कहीं गिद्ध प्रजाति का पक्षी नहीं देखा गया। बताया गया कि जिले में यह पक्षी दूरदराज से कभी प्रवास पर भी नहीं आता। इसका जिले के किसी क्षेत्र में कोई स्थाई ठिकाना या घोंसला भी कभी नहीं पाया गया। इस कारण तय दिन शनिवार को जिले में गिद्धों की गणना के लिए कुछ नहीं हुआ। इस प्रकार एक बार फिर जिले में गिद्धों की संख्या शून्य से आगे नहीं बढ़ी। इससे साफ होता है कि गिद्ध जैसे पर्यावरण रक्षक पक्षी को भी प्रदूषण के मारे इस जिले से कोई मोह नहीं और वह कभी यहां का रुख नहीं करता।
पड़ोसी जिले में हैं कुछ गिद्ध
वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि पड़ौसी सीधी जिले के संजय टाइगर रिजर्व क्षेत्र में कुछ गिद्ध निवास करते हैं। वहां से कभी-कभार बहुत कम समय के लिए कोई गिद्ध इस जिले की सरई तहसील में आता और लौट जाता है। इसलिए उनको प्रवासी पक्षी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो गिद्ध जैसा पक्षी तक यहां की बिगड़ी आबो-हवा मेंं रहना पसंद नहीं करता। इसके बावजूद लगभग १२ लाख लोग सिंगरौली जिले की विषैली हवा में सांस ले रहे हैं।
लुप्त हो गया प्राकृतिक पर्यावरण संरक्षक
इस पक्षी का मुख्य आहार मुर्दा जानवर हैं। ये मृत जानवरों को बड़ी तेजी से चट कर जाते हैं। ऊंचाई पर उड़ते हुए ये पक्षी मृत जानवर को विशेष तौर पर पहचान लेता है और तेजी से वहां पहुंचकर वातावरण को विषैला होने, मृत जानवर के शरीर से गंदी गैस व बदबू उठने से पहले ही सफाई कर देता है। इसलिए गिद्ध को प्राकृतिक सफाईकर्मी व पर्यावरण संरक्षक माना गया है। मगर तथ्य बताते हैं कि वर्ष १९९० के दशक मेंं यह पक्षी बड़ी तेजी से लुप्त हो गया और इसके चलते आज उसे संरक्षण की जरूरत पड़ गई।

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