विस्थापन से डरे बस्तीवाले
बैढऩ-मोरवा मार्ग पर स्थित मुड़वानी डैम के किनारे बसी बैगा बस्ती के लोगों और प्रशासन के बीच अविश्वास की गहरी खाई है। बेहतर सुविधाएं देने के लिए विस्थापन की योजना दशकों पुरानी है, पर रहवासी यहां से जाना नहीं चाहते। उन्हें डर सताता है कि कहीं उनसे घर और जमीन न छीन ली जाए।
कार्यपालन यंत्री नगर निगम सिंगरौली वीबी उपाध्याय ने बताया कि मुड़वानी बस्ती में बिजली नहीं है और शासन की कई योजनाओं से वंचित है। इस बस्ती को विस्थापित करना था, क्योंकि ये क्षेत्र प्राकृतिक और ओबी पहाड़ों से घिरा है। क्षेत्र सुरक्षित नहीं है। लोग बस्ती छोडऩे को तैयार नहीं हैं। अब इन्हें यहीं सुविधाएं दी जा रही हैं।
विलुप्त प्रजाति में शामिल बैगा परिवारों के लिए सुविधाएं लुप्त
कोयला उत्पादक कंपनी एनसीएल द्वारा खड़े किए गए मलबे (ओवर बर्डन) के पहाड़ और दूसरी तरफ डैम के बीचोंबीच बसी बस्ती के बांशिदों ने भी बिजली आने की उम्मीद छोड़ दी है। बैगा परिवारों को विलुप्त होने वाली प्रजाति में शामिल किया गया है। इसके चलते सरकार ने बैगा उत्थान योजना शुरू की है, पर इनका लाभ नहीं मिला है। कुछ महीने पहले डैम को रोशन करने के लिए जरूर खंभे खड़े किए थे। उम्मीद थी कि बिजली पहुंचेगी, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
जीवन यापन के लिए मजदूरी का सहारा
बस्ती की बुजुर्ग महिला अतवरिया बताती हैं कि ४० साल पहले वह यहां ब्याह कर आई थीं। उस समय लोगों का जीवनयापन डैम से निकलने वाली मछलियों से होता था। कुछ साल पहले डैम से मछली निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बकरी पालन का आसरा है, पर इससे घर चलाना मुश्किल है। ऐसे में पुरुष मजदूरी करने शहर जाते हैं। पानवती बताती है कि सरकारी राशन की दुकान पर अनाज नहीं मिलता और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं और शुद्ध पेजयल यहां उपलब्ध हैं।
स्कूलों में उपस्थिति महज 10 फीसदी
बिजली नहीं होने से इस बस्ती की जीवनचर्या दूर-दराज के अंचल जैसी है। यहां माध्यमिक शाला और आंगनबाड़ी है, लेकिन बच्चों की उपस्थिति महज 10 फीसदी ही रहती है। शिक्षक बताते हैं कि बच्चों को लाने के प्रयास किए हैं, पर अधिकतर बच्चे सुबह होते ही बकरियां चराने चले जाते हैं। स्थिति यह है बच्चे हिन्दी वर्णमाला तक नहीं पहचान पाते। इससे इनके बेहतर भविष्य पर संकट मंडरा रहा है।