केन्द्र सरकार की इस योजना के अंतर्गत 12 जनवरी 2015 से संचालित खदानों से रॉयल्टी का 30 प्रतिशत लिए जाने का प्रावधान है। इसके बाद की अवधि वाली खदानों से 10 प्रतिशत राशि लिए जाने की नियम है। इन नियमों का हवाला देते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने अक्टूूबर 2015 में अधिसूचना जारी कर 12 जनवरी 2015 से उक्त वसूली लागू कर दी। शासन के इस निर्णय को कुछ खनन कम्पनियों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। हाल में कोर्ट ने कम्पनियों की याचिका पर फैसला देते हुए 30 अक्टूबर 2015 से वसूली का आदेश सुनाया।
चूंकि आगामी मानसून तक एक भी पैसा नहीं आने वाला है, अत: खनिज विकास प्रतिष्ठानों के पास स्थानीय विकास योजनाओं को लम्बित रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है। यह हालत सिंगरौली ही नहीं, पूरे देश में हो गए हैं। प्रतिष्ठान अब राशि आवंटन में फूंक फूंककर कदम रखने को मजबूर हो गया है। बता दें कि प्रदेश के आधा दर्जन जिलों के क्षेत्रीय विकास में डीएमएफ अहम हिस्सा बन गया था। इसके मार्फत बालाघाट को 24 करोड़, सतना 68 करोड़, रीवा 26 करोड़, शहडोल 61 करोड़, छिंदवाड़ा 34 तथा अनूपपुर को 207 करोड़ का आवंटन हो चुका था।
इस आदेश से अकेले सिंगरौली जिले को 238 करोड़ रुपए का झटका लगा है। खनिज प्रतिष्ठान को जनवरी 2015 से सितम्बर 2017 तक करीब 700 करोड़ रुपए का फण्ड मिला था। विभागीय असेसमेंट के अनुसार जनवरी से अक्टूबर 2015 तक डीएमएफ को 238 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।
एके राय, उप निदेशक (खनिज) सिंगरौली