इंतजार के बाद जब उनकी बारी आई तो केवल एक बोरी डीएपी देकर उन्हें किनारे कर दिया गया। किसान जरूरत का हवाला देकर और डीएपी देने के लिए गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन वितरण में लगे अमले ने उपर से केवल एक बोरी खाद देने का हवाला देकर दूसरे दिन आने को बोल दिया। स्टॉफ ने कहा कि स्टॉक कम है। इसलिए केवल एक बोरी डीएपी मिलेगा।
यूरिया जरूरत के मुताबिक ले सकते हो। यह स्थिति सुबह से लेकर शाम तक देखने को मिली। वितरण के दौरान निराश व हताश किसानों की खीज भी देेखने को मिली। वितरकों व किसानों के बीच कई बार गहमागहमी देखी गई। दरअसल जिले में किसानों की मांग के अनुरूप डीएपी उपलब्ध नहीं है। अधिकारियों ने 15 नवंबर तक बरगवां में डीएपी की एक रेक लगने की उम्मीद की थी, लेकिन निराश होना पड़ा।
कई खेप में रीवा से करीब 150 टन डीएपी मंगाई गई, लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई। किसानों की मांग के मद्देनजर जिले में अभी 400 टन डीएपी की जरूरत है, लेकिन रीवा, सतना व सीधी में भारी कमी के मद्देनजर यहां के लिए अब खाद मिलने की उम्मीद नहीं है। यही वजह है कि वितरण में लगे गोदाम के अमले को निर्देशित किया गया है कि वह एक किसान को केवल एक बोरी डीएपी ही दें। निर्देश के पालन में किसानों को एक बोरी डीएपी ही मिली, जिससे उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा।
बचा केवल एक दिन का स्टॉक
विपणन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक जल्द ही डीएपी की एक रेक आने वाली है। इस रेक में 400 टन डीएपी मिलने की उम्मीद बताई जा रही है। उम्मीदों के अनुरूप डीएपी पहुंची तो ठीक, नहीं किसानों को गोदाम से वापस लौटना पड़ेगा। क्योंकि कचनी गोदाम में अब केवल बुधवार तक के लिए स्टॉक बचा है। वह भी किसानों को केवल एक बोरी देने की स्थिति में, स्टॉक शेष है।
विपणन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक जल्द ही डीएपी की एक रेक आने वाली है। इस रेक में 400 टन डीएपी मिलने की उम्मीद बताई जा रही है। उम्मीदों के अनुरूप डीएपी पहुंची तो ठीक, नहीं किसानों को गोदाम से वापस लौटना पड़ेगा। क्योंकि कचनी गोदाम में अब केवल बुधवार तक के लिए स्टॉक बचा है। वह भी किसानों को केवल एक बोरी देने की स्थिति में, स्टॉक शेष है।
समितियों से भी लौैट रहे किसान
समितियों से भी किसानों को बिना खाद लौटना पड़ रहा है। वैसे तो कई समितियों में खाद उपलब्ध होने की बात की जा रही है, लेकिन हकीकत में समितियों का स्टॉक नाम मात्र का है। केवल सिफारिश वालों को डीएपी मिल रही है। बरका समिति में पिछले चार दिनों से यह स्थिति देखने को मिल रही है। वहां छुट्टी में भी सिफारिश वालों को डीएपी उपलब्ध कराई गई है।
समितियों से भी किसानों को बिना खाद लौटना पड़ रहा है। वैसे तो कई समितियों में खाद उपलब्ध होने की बात की जा रही है, लेकिन हकीकत में समितियों का स्टॉक नाम मात्र का है। केवल सिफारिश वालों को डीएपी मिल रही है। बरका समिति में पिछले चार दिनों से यह स्थिति देखने को मिल रही है। वहां छुट्टी में भी सिफारिश वालों को डीएपी उपलब्ध कराई गई है।
अभी एक तिहाई बोवनी भी नहीं
डीएपी की यह स्थिति तब है, जबकि अभी जिले में एक तिहाई बोवनी भी नहीं हो सकी है। जिले में अब की बार 1.30 लाख हेक्टेयर में बोवनी का अनुमान लगाया गया है, लेकिन अभी तक 40 हजार हेक्टेयर रकबा में भी बोवनी नहीं हुई है। 15 से 20 नवंबर के बीच बोवनी में तेजी आने की संभावना थी, लेकिन डीएपी नहीं मिलने के चलते बोवनी की रफ्तार काफी हद तक धीमी पड़ गई है। यह बात और है कि कुछ किसान खेत तैयार होने की स्थिति में या तो बिना खाद के या फिर निजी दुकानों से खाद खरीद कर बोवनी कर रहे हैं।
डीएपी की यह स्थिति तब है, जबकि अभी जिले में एक तिहाई बोवनी भी नहीं हो सकी है। जिले में अब की बार 1.30 लाख हेक्टेयर में बोवनी का अनुमान लगाया गया है, लेकिन अभी तक 40 हजार हेक्टेयर रकबा में भी बोवनी नहीं हुई है। 15 से 20 नवंबर के बीच बोवनी में तेजी आने की संभावना थी, लेकिन डीएपी नहीं मिलने के चलते बोवनी की रफ्तार काफी हद तक धीमी पड़ गई है। यह बात और है कि कुछ किसान खेत तैयार होने की स्थिति में या तो बिना खाद के या फिर निजी दुकानों से खाद खरीद कर बोवनी कर रहे हैं।