बता दें कि हाल ही में मुख्यालय स्तर पर सभी जिलों में चल रही सहकारिता गतिविधियां व सहकारिता में जन भागीदारी संबंधी कामकाज की समीक्षा की गई। इसमें सिंगरौली जिले में चल रही सहकारिता संबंधी गतिविधियां व इस क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं की संख्या को नाकाफी माना गया। विभाग की समीक्षा में इस जिले में जरूरत होने पर ही पंजीबद्ध सहकारी संस्थाओं के सक्रिय होने और शेष समय में उनके सुस्ती की स्थिति सामने आई। इसी प्रकार सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में जिले में सक्रिय संस्थाओं की बेहद कमी आंकी गई। इस प्रकार कुल मिलाकर मुख्यालय ने जिले में सहकारिता गतिविधियों को केवल औपचारिक व नाकाफी माना जबकि इस आदिवासी जिले में सहकारिता के माध्यम से आदिवासी कल्याण के काफी कार्यक्रम चल सकने की संभावना मानी गई है।
बता दें कि कहने को जिले में लगभग 500 संस्थाएं सहकारिता के अंतर्गत संचालित हैं। मगर हकीकत यह है कि इनमें से अधिकतर संस्थाएं किसी विशेष कार्य या जरूरत के समय ही सक्रिय होती हैं और उनकी गतिविधियां भी बेहद सीमित रहती हैं। तकरीबन आधी संस्थाएं तो निष्क्रिय हैं। आलम यह है कि अब तो पूर्व में पंजीकृत सहकारी संस्थाओं का पंजीयन निरस्त करने की कार्रवाई भी शुरू हो गई है।
मगर अब मुख्यालय के निर्देश पर स्थानीय अधिकारियों को जिले में नई संस्थाएं पंजीकृत करने के साथ ही सहभागिता के माध्यम से कार्य क्षेत्र संबंधी नई संभावनाएं भी तलाशनी होंगी। बताया गया कि मुख्यालय का निर्देश मिलने के बाद विभागीय गतिविधियां तेज हो गई हैं। अधिकारी होमवर्क में जुट गए हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि सिंगरौली में भी सहकारी गतिविधियां तेज होंगी। पंजीकृत संस्थाएं आगे आएंगी और कुछ सकारात्मक कार्य दिखेंगे।