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वेंटीलेटर पर चल रहा है एसएनसीयू, व्यवस्थाओं की कमी से दम तोड़ रहे नवजात

locationसिंगरौलीPublished: Aug 13, 2019 02:16:54 pm

Submitted by:

Amit Pandey

नए ट्रामा सेंटर में भी व्यवस्था मुहैया होने की उम्मीद नहीं….

Newborn dying in Singrauli District Hospital

Newborn dying in Singrauli District Hospital

सिंगरौली. जिला अस्पताल का स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) वेंटीलेटर पर चल रहा है। कमजोर और अतिकुपोषित नवजातों के इलाज व देखभाल के लिए जिला अस्पताल स्थित एसएनसीयू में वेंटीलेटर नहीं होने से हर महीने औसतन पांच नवजात दम तोड़ रहे हैं। इधर, भले ही दावा किया जा रहा है कि नए ट्रामा सेंटर में बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। मगर, नए ट्रामा सेंटर में भी व्यवस्था मुहैया होने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। नतीजा बुनियादी सुविधाओं के अभाव में नवजात दम तोड़ रहे हैं।
अस्पताल की ओर से एकत्र आंकड़े बताते हैं कि औसतन हर महीने पांच से छह शिशुओं की मौत एसएनसीयू में हो जाती है। यूनिट इंचार्ज की माने तो इनमें से आधे से ज्यादा नवजात खून की व्यवस्था न होने से मर रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और यूनिसेफ की मदद से अति गंभीर शिशुओं की इलाज के लिए एसएनसीयू स्थापित की गई। एसएनसीयू में 28 दिन तक के अतिगंभीर नवजातों को रखा जाता है। ताकि शिशु मृत्युदर पर अंकुश लग सके।
यूनिट संचालन के ये हैं मानक
एक यूनिट के संचालन के लिए चार डॉक्टर, 11 स्टाफ नर्स, चार वार्ड ब्वाय, तीन वार्ड, एक लैब टेक्नीशियन, दो स्वीपर, तीन गार्ड व एक डॉटा एंट्री ऑपरेटर होने चाहिए। मगर यहां दो डॉक्टर, 18 नर्स और एक वार्ड ब्वाय है।
सेंट्रल ऑक्सीजन सप्लाई का इंतजाम नहीं
2० शिशुओं के इलाज के लिए एक यूनिट में बीस वार्मर, छह फोटोथैरेपी, दो बबल-सी-पैप, आठ सेक्शन मशीन और सेंट्रल ऑक्सीजन सप्लाई के साथ ही वेंटीलेटर भी होने चाहिए। यूनिट में सेंट्रल ऑक्सीजन सप्लाई का इंतजाम नहीं है और न ही वेंटीलेटर है। वार्मर 1२, दो सेक्शन पाइप, दो बबल-सी-पैप मौजूद हैं। बाकी उपकरणों का अभाव है।
हर महीने औसतन ६२ नवजात भर्ती
जानकारी के मुताबिक हर महीने एसएनसीयू में औसतन ६२ नवजात भर्ती होते हैं। सुविधाओं के अभाव के कारण उनमें से करीब पांच से छह नवजात दम तोड़ देते हैं। मौजूदा वक्त में 1५ नवजात भर्ती हैं। इस स्थिति में एसएनसीयू जैसी सुविधा का कोई मतलब नहीं होता है।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन की व्यवस्था नहीं
कहने को तो एनआरएचएम के तहत सूबे में जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम चल रहा है, लेकिन एनीमिक गर्भवती महिलाओं को ब्लड ट्रांसफ्यूजन का इंतजाम ही नहीं है। इसके अभाव में जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा पैदा हो गया है। खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा 12.5 से कम होने पर महिला को एनीमिक माना जाता है।
ब्लड की कमी
यूनिट इंचार्ज व शिशु रोग विशेषज्ञा डॉ. एपी पटेल का कहना कि ब्लड ट्रांस फ्यूजन की व्यवस्था न होने से जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा पैदा हो गया है। एनीमिक गर्भवती महिलाओं को समय से रक्त उपल्बध होने से नवजात के जीवन को बचाया जा सकता है। रक्तस्राव, प्रसवकाल, ऑपरेशन, थैलेसिमिया, हीमोफीलिया, ल्यूकोमिया, मलेरिया आदि रोगों में रक्त की जरूरत पड़ती है।
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