जननी सुरक्षा योजना फ्लॉप
कहने को तो प्रसूतओं को समुचित प्रसव के लिए घर से जननी वाहन अस्पताल पहुंचाएगी और प्रसव के बाद फिर उन्हें घर तक छोड़ेगी, लेकिन सरकार की जननी सुरक्षा योजना फ्लॉप जान पड़ रही है। हैरान करने वाली बात यह है कि आज भी ५० फीसदी प्रसूताओं का प्रसव घर पर हो रहा है। यही वजह है कि उनकी हालत बिगडऩे पर बेहतर इलाज नहीं मिलता है और वह दम तोड़ देती हैं। दावा गांवों में तमाम व्यवस्था किए जाने का है। इसके बावजूद प्रसूताओं के एनीमिक रहने का मामला प्रकाश में आ रहा है।
कहने को तो प्रसूतओं को समुचित प्रसव के लिए घर से जननी वाहन अस्पताल पहुंचाएगी और प्रसव के बाद फिर उन्हें घर तक छोड़ेगी, लेकिन सरकार की जननी सुरक्षा योजना फ्लॉप जान पड़ रही है। हैरान करने वाली बात यह है कि आज भी ५० फीसदी प्रसूताओं का प्रसव घर पर हो रहा है। यही वजह है कि उनकी हालत बिगडऩे पर बेहतर इलाज नहीं मिलता है और वह दम तोड़ देती हैं। दावा गांवों में तमाम व्यवस्था किए जाने का है। इसके बावजूद प्रसूताओं के एनीमिक रहने का मामला प्रकाश में आ रहा है।
खून के अभाव में दम तोड़ रही प्रसूताएं
स्वास्थ्य विभाग प्रत्येक माह गर्भवती महिलाओं का चेकअप कर उन्हें सलाह देने का दावा करता है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से मैदानी अमला भी तैनात है। लेकिन नहीं लगता है कि मैदानी अमला सही तरीके से कार्य कर रहा है। स्वास्थ्य कर्मी गर्भवती महिलाओं तक पहुंचे होते और उन्हें सलाह के साथ पहले ही पोषक तत्व मिला होता तो ऐसी नौबत नहीं आती। नतीजा जहां प्रसूताएं खून की कमी का शिकार रहती हैं।वहीं उन्हें इलाज के दौरान भी ब्लड नहीं मिलता है। जबकि रेडक्रॉस सोसायटी व अस्पताल प्रबंधन ब्लड की समुचित व्यवस्था होने का दावा करते हैं।
स्वास्थ्य विभाग प्रत्येक माह गर्भवती महिलाओं का चेकअप कर उन्हें सलाह देने का दावा करता है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से मैदानी अमला भी तैनात है। लेकिन नहीं लगता है कि मैदानी अमला सही तरीके से कार्य कर रहा है। स्वास्थ्य कर्मी गर्भवती महिलाओं तक पहुंचे होते और उन्हें सलाह के साथ पहले ही पोषक तत्व मिला होता तो ऐसी नौबत नहीं आती। नतीजा जहां प्रसूताएं खून की कमी का शिकार रहती हैं।वहीं उन्हें इलाज के दौरान भी ब्लड नहीं मिलता है। जबकि रेडक्रॉस सोसायटी व अस्पताल प्रबंधन ब्लड की समुचित व्यवस्था होने का दावा करते हैं।