साथ ही सिंगरौली में मौजूद कोयले का भंडार गुणवत्ता की दृष्टि से पूरी दुनियां में उच्च स्तर का है। कोयला उत्पादक कंपनी एनसीएल (नार्दन कोल फील्ड लिमिटेड) यहां से हर साल करीब 80 मिलियन मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन करती है। एनसीएल व
एनटीपीसी से संबद्ध करीब ढाई दर्जन निजी कंपनियां भी यहां कार्यरत हैं, बावजूद इसके विकास की दृष्टि पीछे रहना चिंता का विषय है।
नीति आयोग ने बनाई कार्ययोजना नीति आयोग ने इस जिले के समग्र विकास के लिए कार्ययोजना तैयार की है। जिसके क्रियान्वयन की मॉनीटरिंग भी पीएमओ स्तर से की जा रही है। गत 7 अप्रैल को केन्द्रीय विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर भी इसी सिलसिले में सिंगरौली पहुंचे थे। वे यहां एनटीपीसी के सूर्याभवन में जिला के अला अफसरों व जनप्रतिनिधियों की बैठक कर प्रगति समीक्षा की थी। अब 25 अप्रैल को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी समीक्षा करेंगे। वे इसके लिए मंडला जिले में सिंगरौली सहित प्रदेश के अन्य आठ जिलों के आला अफसरों की बैठक लेंगे।
जंगली उत्पादों पर आश्रित आदिवासियों का जीवन बता दें सिंगरौली जिले में विकास के नाम पर तमाम उद्योग स्थापित किए गए। किसानों की जमीनें अधिगृहीत की गईं और किसान मजदूर बन गए। रोगजार के लिए यहां के आदिवासी पलायन करने को मजबूर हैं। यहां की बिजली से देश में उजाला फैल रहा है। मगर, यहां के लोग विकास की किरणों से मौजूदा वक्त में भी कोसों दूर हैं। कहने को तो यहां देश की सबसे बड़ी तापीय परियोजना विंध्यनगर एनटीपीसी है। जहां रोजाना 4760 मेगवॉट बिजली का उत्पादन किया जाता है, साथ ही सासन मेगा अल्ट्रा पॉवर, हिण्डाल्को, एस्सार पॉवर, जेपी पॉवर जैसी तापीय परियोजनाएं हैं। एनसीएल की 10 कोलमाइंस भी इसी जिले में स्थित हैं। लेकिन आदिवासी बाहुल्य इस जिले का विकास नहीं हो सका। आज भी इनका जीवन जंगली उत्पादों पर आश्रित है।
जिले की खास समस्याएं
– आदिवासियों की दीन-दशा में सुधार नहीं। आज भी आदिवासी परिवार जंगल और जंगली उत्पादों पर जीवन गुजर-बसर कर रहे हैँ। – औने-पौने दाम पर कंपनियां किसानों की जमीनें अधिग्रहित कर लीं। अधिग्रहण के बदले लोगों को
रोजगार नहीं मिला।
– बेरोजगारी, प्रदूषण एवं विस्थापन व पुनर्वासन यहां की समस्या बनी रही। – हायर एवं टेक्निकल एजुकेशन रसातल में है। अच्छे इंस्टीट्यूट्स नहीं खुले, जिससे बेरोजगारी बढ़ती गई। – एक जिला अस्पताल भर है, जबकि यहां की आबादी ११ लाख से ज्यादा है।
– जांच व इलाज के नाम पर जिला अस्पताल में सुविधाएं नहीं हैं। लोगों को जांच व इलाज के लिए जबलपुर, भोपाल, लखनऊ, वाराणसी आदि जाना होता है। – नक्सली प्रभावित क्षेत्र होने के बाद भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।
– कई गांवों में बिजली के कनेक्शन नहीं हैं। – नेतृत्व का अभाव यहां हमेशा से बना रहा है।
इन योजनाओं पर संकट के बादल नवोदय विद्यालय: करीब 232 करोड़ की लागत से यहां नवोदय विद्यालय खोले जाने की योजना है। यह मामला बीते तीन साल से चल रहा है। मगर, शासनस्तर से अब तक जमीन का आवंटन नहीं किया गया। जबकि रीवा कमिश्रर ने बीते साल ही प्रमुख सचिव राजस्व को फाइल भेज दी थी। यह विद्यालय रंपा में खुलना है।
माइनिंग कॉलेज: माइनिंग कॉलेज खोले जाने पर भी ग्रहण मंडरा रहा है। करीब चार सौ करोड़ की लागत की यह योजना बजट का इंतजार कर रही है। जानकारी के अनुसार, सोसाइटी एक्ट में कॉलेज का रजिस्ट्रेशन ही नहीं हुआ। भवन निर्माण का नक्शा अभी तक लोक निर्माण विभाग नहीं तैयार कर सका।
कृषि विज्ञान केंद्र : करीब 450 करोड़ की लागत से बनने वाला कृषि विज्ञान केन्द्र की फाइल अभी जिला प्रशासन और जिले के प्रभारी मंत्री के बीच झूल रही है। इसी के साथ जेनरिक दवाओं के केन्द्र अब तक नहीं खोले जा सके।
मेडिकल कॉलेज : पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री को इस बारे में पत्र लिख चुके थे। प्रदूषण: एनजीटी के आदेश के बाद भी सड़क मार्गों से कोल परिवहन बदस्तूर जारी है। जिससे लोग आएदिन भारी वाहनों से कुचलकर दम तोड़ रहे हैं। साथ ही समूचा क्षेत्र प्रदूषण की चपेट में है।
फोरलेन: करीब नौ साल से प्रस्तावित सीधी-सिंगरौली फोरलेन अब तक नहीं बन सकी है। इस तरह से यहां के लोग आज भी संभागीय कार्यालय रीवा से कटे महसूस कर रहे हैं।