खदान सरपंच भगत सिंह के नाम पर संचालित है
बतादें कि यह खदान सरपंच भगत सिंह के नाम पर संचालित है। सूत्रों की मानें तो भाजपा नेता का संरक्षण इस खदान को मिला है। कार्रवाई के दौरान मौके पर ही एक पोकलेन मशीन बरामद की गई। जिसे कोतवाली में खड़ा करा लिया गया है। यह तो महज एक बानगीभर है। इसी तरह से सभी खदानों में पोकलेन मशीनें गरज रही हैं। जानकारी के अनुसार, अभी दो दिन पहले ही भरसेड़ी ग्राम पंचायत की रेत खदान से पोकलेन मशीन हटा ली गई है। इस कारवाई में कोतवाल मनीष त्रिपाठी, प्रधान आरक्षक अरविंद चतुर्वेदी, पिण्टू राय,आरक्षक संजय सिंह परिहार, श्याम सुंदर बैस आदि मौजूद रहे।
बतादें कि यह खदान सरपंच भगत सिंह के नाम पर संचालित है। सूत्रों की मानें तो भाजपा नेता का संरक्षण इस खदान को मिला है। कार्रवाई के दौरान मौके पर ही एक पोकलेन मशीन बरामद की गई। जिसे कोतवाली में खड़ा करा लिया गया है। यह तो महज एक बानगीभर है। इसी तरह से सभी खदानों में पोकलेन मशीनें गरज रही हैं। जानकारी के अनुसार, अभी दो दिन पहले ही भरसेड़ी ग्राम पंचायत की रेत खदान से पोकलेन मशीन हटा ली गई है। इस कारवाई में कोतवाल मनीष त्रिपाठी, प्रधान आरक्षक अरविंद चतुर्वेदी, पिण्टू राय,आरक्षक संजय सिंह परिहार, श्याम सुंदर बैस आदि मौजूद रहे।
जिला प्रशासन के संरक्षण में कारोबार
जिला प्रशासन ने रेत कारोबारियों के साथ सेटिंग करते हुए जिस अनुपात में पंचायतों की रेत खदानों से रेत निकालकर ट्रकों से यूपी भिजवाई जा रही है, यदि इस रेत को पंचायत की नीति के अनुसार बेचा जाता तो पंचायत को फायदा होता और प्रशासन को भी राजस्व मिलता। लेकिन यहां जिला प्रशासन के संरक्षण में रेत के खेल में गोलमाल चल रहा है। इसके बाद भी ग्राम पंचायत की रेत खदानें पंचायत के नाम से चल जरूर रही हैं लेकिन नकली पिटपास के जरिए इसे यूपी में भेजा जा रहा है।
जिला प्रशासन ने रेत कारोबारियों के साथ सेटिंग करते हुए जिस अनुपात में पंचायतों की रेत खदानों से रेत निकालकर ट्रकों से यूपी भिजवाई जा रही है, यदि इस रेत को पंचायत की नीति के अनुसार बेचा जाता तो पंचायत को फायदा होता और प्रशासन को भी राजस्व मिलता। लेकिन यहां जिला प्रशासन के संरक्षण में रेत के खेल में गोलमाल चल रहा है। इसके बाद भी ग्राम पंचायत की रेत खदानें पंचायत के नाम से चल जरूर रही हैं लेकिन नकली पिटपास के जरिए इसे यूपी में भेजा जा रहा है।
पत्रिका ने किया था खुलासा
जिले में संचालित ज्यादातर ग्राम पंचायतों की खदानों पर यूपी के करोबारियों का कब्जा है। सरपंच-सचिव तो सिर्फ मोहरा बन चुके हंै। खदान के लिए रकम यूपी के कारोबारी लगाए हैं। उनके ठेकेदार खदानों के मालिक बन बैठे हैं। जबकि रेत का संचालन सरपंचों के नाम से किया गया है। हैरत की बात यह कि यहां से रेत इलेक्ट्रॉनिक एंट्री लेटर (इइएल) पर ही रोजाना करीब दो सौ ट्रक वाराणसी, मिर्जापुर, राबटर््सगंज, जौनपुर आदि शहरों को बेची जा रही है। इस तरह से रोजाना करीब 10 लाख से ज्यादा का सरकार को राजस्व घाटा उठाना पड़ रहा है। जबकि रेत इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिट पास (इटीपी) पर ही बाहर भेजी जा सकती है। जानकारी के बाद बुधवार को पत्रिका संवाददाता हर्रहवा स्थित पंचायत की खदान के ठेकेदार नरेश गुप्ता से ट्रांसपोर्टर बनकर बात किया। तो सारा मामला सामने आ गया। यह सब खेल जिला प्रशासन और कारोबारियों की मिलीभगत से चल रहा है।
जिले में संचालित ज्यादातर ग्राम पंचायतों की खदानों पर यूपी के करोबारियों का कब्जा है। सरपंच-सचिव तो सिर्फ मोहरा बन चुके हंै। खदान के लिए रकम यूपी के कारोबारी लगाए हैं। उनके ठेकेदार खदानों के मालिक बन बैठे हैं। जबकि रेत का संचालन सरपंचों के नाम से किया गया है। हैरत की बात यह कि यहां से रेत इलेक्ट्रॉनिक एंट्री लेटर (इइएल) पर ही रोजाना करीब दो सौ ट्रक वाराणसी, मिर्जापुर, राबटर््सगंज, जौनपुर आदि शहरों को बेची जा रही है। इस तरह से रोजाना करीब 10 लाख से ज्यादा का सरकार को राजस्व घाटा उठाना पड़ रहा है। जबकि रेत इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिट पास (इटीपी) पर ही बाहर भेजी जा सकती है। जानकारी के बाद बुधवार को पत्रिका संवाददाता हर्रहवा स्थित पंचायत की खदान के ठेकेदार नरेश गुप्ता से ट्रांसपोर्टर बनकर बात किया। तो सारा मामला सामने आ गया। यह सब खेल जिला प्रशासन और कारोबारियों की मिलीभगत से चल रहा है।