आधा अधूरा ही पड़ा है। अर्जुन सिंह का प्रधानमंत्री आवास में नाम जोड़ा गया लेकिन उन्हें अभी तक पूरी राशि नहीं मिल पाई। जिसकी वजह से उनके घर का निर्माण पूरा नहीं हो पाया। उन्हें बरसात में झोपड़ी में ही गुजारना पड़ रहा है। सचिव की मनमानी की वजह से उसके मकान की किस्त नहीं जारी की गई जिससे निर्माण कार्य अधूरे में ही रोकना पड़ा। उन्होंने मांग की है कि उनकी राशि जारी कर दी जाए जिससे वे अपने घर का निर्माण पूरा करा सके।
आदिवासी बहुल गांव है गिधेर
गिधेर गांव में ज्यादातर गोड़ आदिवासी रहते हैं। जो शिक्षित नहीं है। उनके पास कोई रोजगार भी नहीं है। ऐसे में वे मजदूरी कर या फिर कुछ खेती कर अपना गुजर बसर कर रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना का उद्देश्य ऐसे ही गरीब लोगों को आवास उपलब्ध कराना है। इन गावं के ज्यादा से ज्यादा लोगों को पहले चरण में ही आवास उपलब्ध कराना था लेकिन हुआ यह कि गरीबों को आवास नहीं मिला। ऐसे गांव जहां आदिवासी ज्यादा है उन गांव को कम लाभ दिया गया। यही वजह है कि अर्जुन का घर अभी तक नहीं बन पाया है।
जि मेदार अधिकारियों की मनमानी
प्रधानमंत्री आवास के तहत ज्यादातर उन गांव को आवास दिए गए जो पहले से ही संपन्न थे। जिनके माता – पिता के नाम जमीन एवं घर है। उनके बच्चों को आवास दिए गए। जिनके माता – पिता शिक्षक हैं उनके बच्चों को आवास दिया गया। इस पूरे मामले में जिला पंचायत के बड़े अधिकारियों की भी मिली भगत रही। कई जगह सरंपच – सचिव एवं रोजगार सहायक के चहेतों को आवास दिया गया। हकीकत में जो पात्र थे उन्हें नजरअंदाज किया गया। यही वजह है कि गिधेर के अर्जुन सिंह अभी भी झोपड़ी में रह रहे हैं और सहुआर, चदुआर, झखराबल के कई संपन्न लोगों का प्रधानमंत्री आवास बनकर तैयार हो गया।