बता दें कि जिले में सिंचित क्षेत्र का विस्तार करने के लिए 2012-13 में चार लघु सिंचाई परियोजनाओं की स्थापना की गई। ये परियोजनाएं लगभग चार हजार हेक्टेयर को सिंचित करने के उद्देश्य से स्थापित की गईं। मगर दुर्भाग्य से सभी परियोजनाएं एक-दो साल चलने के बाद 2015 में बंद हो गईं। इसके चलते सिंचाई भी बंद हो गई। इससे इन परियोजनाओं की स्थापना में लगा लाखों रुपया भी व्यर्थ चला गया। बताया गया कि यह सभी परियोजनाएं लिफ्ट पर आधारित थीं और कई कारणों से थोड़ा समय चलने के बाद बंद हो गई। इन परियोजनाओं में ही, सिंचाई कर का किसानों पर लगभग 40 लाख रुपए बकाया है।
अब सात-आठ साल जल संसाधन विभाग सोते से जागा और इस 40 लाख रुपए की बकाया राशि की पड़ताल शुरू करने जा रहा है। ऐसे संकेत मिलने लगे हैं। बताया जा रहा है कि अब उन किसानों पर गाज गिरनी तय है जो इस परियोजना का लाभ उठा रहे थे। विभागीय सूत्रो के मुताबिक ये माना जा रहा है कि ये परियोजनाएं लाभान्वित किसानों द्वारा समय से सिंचाई कर का भुगतान न करने के कारण बंद हो गईं। ऐसे में उन किसानों से अब वसूली की जाएगी।
किसानों ने नहीं जमा की रकम
परियोजनाओं के बंद हो जाने के बाद किसानों ने सिंचाई कर का पैसा जमा करने की भी जरूरत नहीं समझी। इसलिए यह राशि आज तक अटकी है। बताया गया कि अब इसी राशि को जुटाने की कवायद शुरू की जा रही है। इसके तहत जिला स्तरीय अधिकारियों को निर्देशित किया गया है।
परियोजनाएं जहां अटकी है राशि
– गोपद लिफ्ट परियोजना 3000 हेक्टेयर
– चंदवार लिफ्ट परियोजना 250 हेक्टेयर
– कचनी लिफ्ट परियोजना 310 हेक्टेयर
– मयार लिफ्ट परियोजना 300 हेक्टेयर