शहर से लेकर गांव तक महिलाओं में होने वाली यौन जनित बीमारियों के प्रति जागरूकता लाने के लिए जिले का स्वास्थ्य महकमा गंभीर नहीं है। जिला अस्पताल में हर माह शहरी क्षेत्र से लगभग 110 महिलाएं उपचार कराने पहुंच रही है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बने सामुदायिक केंद्रों पर हर माह यह संख्या 50 महिलाओं से ज्यादा है। मतलब, सालभर में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों से डेढ़ हजार से ज्यादा महिलाएं अनकही जाने वाली बीमारी से जूझ रहीं हैं। यह तो सिर्फ बानगीभर है। एनटीपीसी और नेहरू अस्पताल की बात करें तो यहां के भी आंकड़े कम नहीं हैं।
आरोप है महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए स्वास्थ्य महकमा की ओर से कोई प्रयास भी नहीं किया जा रहा है। जिस वजह से यौन जनित बीमारियों से ग्रसित महिलाओं में इजाफा हो रहा है। 2016 के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो हर माह लगभग 80 महिलाएं उपचार कराने आती थी, जबकि साल 2017 में बढ़कर हर माह करीब 110 महिलाएं उपचार करा रही है। इसी प्रकार 2018 में भी डेढ़ सौ के करीब महिलाएं जिला अस्पताल में उपचार कराने पहुंची हैं। ये वह बीमारियां है जिनके बारे में महिलाएं बात करने और परिजनों से बताने में शर्म महसूस करती हैं।
महिला बाल विकास परियोजना से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश सरकार ने अगस्त 2015 में आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से उदिता कॉर्नर योजना की शुरुआत की। सरकार की मंशा थी कि आंगनबाडिय़ों में पदस्थ कार्यकर्ता व सहायिका महिलाओं व किशोरियों को यौन जनित बीमारियों की जानकारी देंगी और नेपकिन उपलब्ध कराएंगी, लेकिन योजना लापरवाही की भेंट चढ़ गई। अभी तक जिले में इस योजना को पंख नहीं लग पाए और योजना का संचालन कागजों में हो रहा है।
उदिता कार्नर योजना के तहत हर माह सेनेटरी नेपकिन के उपयोग के बारे में बताया जाना था। इसके अलावा उदिता योजना के माध्यम से विद्यालयों, महाविद्यालयों, कन्या छात्रावास, शासकीय एंव निजी अस्पतालों, महिला के काम करने के स्थान, स्थानीय दुकान, स्व.सहायता समूहों एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर सेनेटरी नेपकिन को उपलब्ध करना था लेकिन महिला बाल विकास विभाग की ओर से ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. दीक्षा पाण्डेय ने बताया, शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं व किशोरियों में अभी भी जानकारी का अभाव बना हुआ है। इस तरह की बीमारियों को बताने में महिलाएं शर्म महसूस करती है। सबसे अधिक समस्या ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश महिलाएं रोग से पीडि़त होने के कारण अस्पताल नहीं जाती है। उन्होंने बताया कि बीमारी से ग्रसित होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि माहवारी के दौरान महिलाएं नेपकिन का उपयोग नहीं करती है। उसकी जगह पारम्परिक साधनों का उपयोग करती हैं जो असुरक्षित होता है। जिसकी वजह से महिलाओं के पेट के निचले हिस्से में दर्द शुरू हो जाता है।
सुमन वर्मा, जिला कार्यक्रम महिला एवं बाल विकास अधिकारी
डॉ. आरपी पटेल, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी