बताया गया कि मध्यप्रदेश शासन से हुए करार के तहत रिहंद के पानी का बिजली उत्पादन में एस्सार कंपनी 46.87 एमसीएम वार्षिक उपयोग करती है। इसी प्रकार सासन पावर कंपनी इससे लगभग डेढ़ गुणा अधिक पानी वार्षिक बिजली उत्पादन में उपयोग करती है। करार के तहत ही दोनों कंपनियां इतने पानी का उपयोग करने के बदले मध्यप्रदेश सरकार को जल कर के रूप में तय राशि अदा करते आ रहे हैं। बताया गया कि दोनों कंपनियों से मध्यप्रदेश को मिलने वाली जल कर की यह राशि पांच करोड़ रुपए मासिक के आसपास है।
इन कंपनियों को मध्यप्रदेश सरकार की ओर से रिहंद बांध मेें अपने हिस्से में से ही वर्षों से यह पानी दिया जाता रहा है। यह सिलसिला अब भी जारी है। मध्यप्रदेश की ओर से रिहंद बांध मेें अपने हिस्से में से ही इन कंपनियों को उनकी मांग के अनुसार बिजली उत्पादन के लिए पानी मुहैया कराने का पुराने समय में करार किया गया। यहां जल संसाधन विभाग के अधिकारी सूत्रों ने बताया कि अंतरराज्यीय जल समझौते के अनुसार रिहंद बांध के पानी मेंंं मध्यप्रदेश का हिस्सा .78 एमएएफ है।
मध्यप्रदेश की ओर से अपने हिस्से के पानी का उपयोग किए जाने के बावजूद यूपी जल बोर्ड की ओर से बिजली के लिए कंपनियों को दिए जा रहे पानी पर अपना दावा जताने का राग अलापा जा रहा है। इसी आधार पर यूपी जल बोर्ड की ओर से कुछ समय से एस्सार को लगातार नोटिस देकर जल कर की राशि की मांग की जा रही है। इससे पहले ऐसे ही नोटिस सासन पावर को दिए गए। इससे परेशान होकर इन कंपनियों को उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। इसे लेकर सासन पावर इसी वर्ष न्यायालय पहुंची जबकि एस्सार को इससे पहले ही उच्च न्यायालय में जाना पड़ा था। इसी मामले में राज्य का जल संसाधन विभाग व यूपी जल बोर्ड आमने-सामने है।
फिलहाल रहेगी यथास्थिति
जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री आरएएस कौशिक ने बताया कि इस मामले मेेंं उच्च न्यायालय में मंगलवार को पेशी हुई। इससे पिछली पेशी पर जुलाई में उच्च न्यायालय ने मामले मेंं यथा स्थिति का आदेश दिया था। इसके तहत आगे भी कंपनियों की ओर से जल कर की राशि का भुगतान जल संसाधन विभाग को ही किया जाएगा। उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय ने 10 मई को यूपी जल बोर्ड को अपना पक्ष रखने के लिए तलब किया था। इसकी पालना में यूपी के प्रतिनिधि न्यायालय में हाजिर हुए। इससे पहले जल संसाधन विभाग अपना पक्ष पेश कर चुका।
जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री आरएएस कौशिक ने बताया कि इस मामले मेेंं उच्च न्यायालय में मंगलवार को पेशी हुई। इससे पिछली पेशी पर जुलाई में उच्च न्यायालय ने मामले मेंं यथा स्थिति का आदेश दिया था। इसके तहत आगे भी कंपनियों की ओर से जल कर की राशि का भुगतान जल संसाधन विभाग को ही किया जाएगा। उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय ने 10 मई को यूपी जल बोर्ड को अपना पक्ष रखने के लिए तलब किया था। इसकी पालना में यूपी के प्रतिनिधि न्यायालय में हाजिर हुए। इससे पहले जल संसाधन विभाग अपना पक्ष पेश कर चुका।