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आश्रितों पर जेपी पावर कंपनी ने नहीं की अनुकंपा, प्रशासन का आदेश भी नजर अंदाज

locationसिंगरौलीPublished: Jan 27, 2020 02:03:15 pm

Submitted by:

Amit Pandey

भटक रहे कई परिवार

Singrauli administration order also ignored

Singrauli administration order also ignored

सिंगरौली. निजी कंपनी ने अपने यहां सेवा दे रहे कर्मचारियों के देहांत के बाद उनके आश्रितों को रोजगार देना जरूरी नहीं समझा। मृतक आश्रित उपखंड कार्यालय गए तो वहां उपखंड अधिकारी ने उनके पक्ष में बाकायदा अनुकंपा नियुक्ति देने का आदेश जारी किया मगर कोल परियोजना क्षेत्र की निजी कंपनी ने आदेश की पालना करने की जरूरत नहीं समझी। ऐसे में मृतक आश्रित कई वर्ष से रोजगार का इंतजार करने को विवश हैं। मामला निगरी स्थित जेपी पावर कंपनी से जुड़ा है जो पांच-छह वर्ष पुराना है। कंपनी के इस मनमाने व्यवहार के चलते मृतक आश्रित व उनका परिवार फाकाकसी का शिकार हैं। इन परिवारों की भूमि कंपनी पहले ही अधिग्रहण कर चुकी। इसके चलते परिवार पेट भरने को मजदूरी करने तक के लिए मोहताज है।
कंपनी की मनमानी का खामियाजा दो आश्रितों को मुख्य रूप से भुगतना पड़ रहा है। विवरण के अनुसार गांव कटई निवासी मिथिलेश जायसवाल व निगरी निवासी रवि साहू की पैतृक भूमि 2010 के आसपास निगरी में जेपी पावर कंपनी ने अधिग्रहण कर ली। इस प्रकार दोनों परिवार विस्थापित हो गए। इसके बाद कंपनी ने मिथिलेश जायसवाल व रवि साहू के पिता को अपने यहां नौकरी दी। मगर वर्ष 2013 में दोनों का अलग-अलग तिथि में निधन हो गया। इसके बाद नियमानुसार उनके एक-एक आश्रित को कंपनी में अनुकंपा नियुक्ति मिलनी थी मगर एेसा नहीं हुआ। इसके लिए मिथिलेश व रवि साहू ने कंपनी प्रबंधन से निवेदन भी किया मगर शिकायत है कि उनकी बात अनसुनी हो गई। इससे परेशान होकर दोनों ने अनुकंपा नियुक्ति दिलाने के लिए उपखंड कार्यालय देवसर में आवेदन दिया।
इस पर उपखंड अधिकारी की ओर से तीन जनवरी 2013 को आदेश परित किया गया। इसमें निगरी स्थित जेपी पावर कंपनी के सीईओ को मिथिलेश व रवि को अपने यहां रोजगार देने का निर्देश दिया गया मगर शिकायत है कि कंपनी ने एसडीएम के इस आदेश को हवा में उड़ा दिया और दोनों को काम पर नहीं रखा। हालत यह है कि इतने वर्ष बीतने के बाद भी प्रशासन जेपी कंपनी से अपने आदेश की पालना नहीं करवा पाया। इस बीच जमीन आदि पहले ही अधिग्रहण हो जाने के कारण मिथिलेश व रवि और उनके परिवार आर्थिक संकट से घिरे हैं और उनको जैसे-तैसे गुजारा करना पड़ रहा है। इसका कारण दोनों ही परिवारों के पास मेहनत-मजदूरी के अलावा रोजगार का दूसरा कोई सहारा नहीं होना है।
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